मोहब्बत


मोहब्बत
एक दास्ताँ बन जाए.
कुछ ऐसे करो
की कोई निशाँ बन जाए.

आज हम हैं तुम्हारी बाहों में
कल हों या ना हों.
इस कदर चुम लो इस एक रात में
की जिंदगी आसान हो जाए.

परमीत सिंह धुरंधर

मोहब्बत में थोड़ी- बहुत ममता का होना बहुत जरुरी है


हर मोहब्बत में थोड़ी- बहुत ममता का होना बहुत जरुरी है, वरना वो मोहब्बत, मोहब्बत न होकर, वासना, काम, लोभ और प्रतिशोध बन जाता है. इसलिए तो माँ सर्वश्रेष्ठ है देवों से भी, क्योंकि माँ गलती या पाप होने पे भी उसकी सजा नहीं देती। माँ तो गले लगाती है फिर भी. लेकिन, देवता देते हैं, भाई! ऐसा कोई रिश्ता नहीं है, चाहे पिता, भाई, बहन, दादा, दादी या गुरु का ही रिश्ता हो, जो बिना ममता के बहुत दिनों तक जीवित रह सके!

 

परमीत सिंह धुरंधर

मोहब्बत:सौ जिस्म को पाने की एक होड़ है


मोहब्बत अब वो महब्बत नहीं,
बस शिकवा-शिकायत है.
सौ जिस्म को पाने की,
बस एक होड़ है.
नारी सौ दहलीज को लांघ कर भी,
जहाँ शर्म से अब भी बंधी है,
ऐसे असंख्य झूठे कहानियों की,
एक किताब है.
झूठे आंसू, झूठे वादे,
झूठे अदाओं से भरपूर,
बेवफाओं की एक दास्ताँ है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

मोहब्बत


कसम क्या दे उन्हें अब मोहब्बत का,
वो दिन थे जब हम जला करते थे.
अब ये राते हैं,
जब वो जला करती हैं.

परमीत सिंह धुरंधर

जुदाई


वो शाम सी ढली,
और खो गयी,
रात के अंधेरो में,
की हम फिर मिल न सके.
उसे जिद्द था मुझसे दूर जाने की,
मुझे गुरुर था उसके निगाहों की,
उसकी मोहब्बत में,
बनकर तारा यूँ मैं टूटा,
की फिर कभी ये जुदाई मिट न सकी.

परमीत सिंह धुरंधर

मोहब्बत


तेरी जुल्फों में सोया करता था,
अब तन्हा-तन्हा फिरता हूँ.
बहुत मगरूर था जिस मोहब्बत पे,
अब उसी का मातम करता हूँ.

परमीत सिंह धुरंधर

ए जालिम


उम्र ऐसे ये ढलने लगी हैं,
मेरी नजर तेरे सीने पे लगी है.
कभी मुझसे भी आके मिल, ए जालिम,
मोहब्बत अब अगन बन गयी है.
तेरी मंजिल मेरी ये तड़प हैं,
मेरी चाहत है पाना तुझे।
अपनी ये जिद छोड़ भी दे, ए जालिम,
जिंदगी अब कहर बन गयी है.
लगेगी रोज भीड़ तेरी दीदार पे,
जिंदगी है तनहा ये बिना तेरे श्रृंगार के.
पर्दा ये अब हटा भी दे, ए जालिम,
दुरी ये अब जहर बन गयी है.

परमीत सिंह धुरंधर

मोहब्बत


वो क्या समझेंगें मेरी मोहब्बत को,
जो बस शाहजहाँ का नाम उछालतें हैं.
हम तो बिना मुमताज़ के ही,
इश्क़ में अपना सब कुछ लूटा गए.

परमीत सिंह धुरंधर