हर जनम में पिता बन कर
हे प्रभु शिव
रखों मेरे सर पे अपना हाथ.
और मैं पुत्र बनकर
आपके चरणों को धो के पीता रहूँ
जपता रहूँ आपका नाम.
परमीत सिंह धुरंधर
The hotcrassa ia about me, my poems, my views, my thinking and my dreams.
हर जनम में पिता बन कर
हे प्रभु शिव
रखों मेरे सर पे अपना हाथ.
और मैं पुत्र बनकर
आपके चरणों को धो के पीता रहूँ
जपता रहूँ आपका नाम.
परमीत सिंह धुरंधर
शिव आप ही मेरी आत्मा,
शिव आप ही हो मेरे परमात्मा।
शिव, आप को ही है मुझे पाना,
ये ही है मेरी कामना, ये ही है मेरी उपासना।
शिव, मुझे उद्दंड बना दो,
शिव, मुझमे घमंड भर दो.
पर सदा चरणों में अपने रखना,
ये ही है मेरी कामना, ये ही है मेरी उपासना।
धरती से आकाश तक, प्रलय मचा दूँ,
त्राहिमाम मचा दूँ,
हाहाकार मचा दूँ.
मुझे अमृत नहीं, आप सा विष ही है चखना,
ये ही है मेरी कामना, ये ही है मेरी उपासना।
शिव आप ही मेरी आत्मा,
शिव आप ही हो मेरे परमात्मा।
शिव, आप को ही है मुझे पाना,
ये ही है मेरी कामना, ये ही है मेरी उपासना।
परमीत सिंह धुरंधर
आवो माँ,
करें उपासना शिव – शंकर की,
हम आज साथ में.
पिता मेरे कितने भोले हैं?
रखते हैं सर्पों को भी साथ में.
सर्वश्व त्याग कर जिसने,
सिर्फ एक कैलास को थाम लिया।
अमृत दे कर जग को सारा,
जिसने स्वयं विष-पान किया।
तो आवो माँ,
चरण पखारें शिव – शंकर की,
आज हम साथ में.
पिता मेरे कितने भोले हैं?
रखते हैं सर्पों को भी साथ में.
हर जन्म में पुत्र बनूँ मैं शिव का,
ये गोद मिला मुझे सौभाग्य से.
बन कर धुरंधर शिव सा,
मैं भी त्याग करूँ सर्वश्व अपना,
जग कल्याण में.
तो आवो माँ,
आशीष ले शिव-शंकर की,
हम आज साथ में.
पिता मेरे कितने भोले हैं?
रखते हैं सर्पों को भी साथ में.
परमीत सिंह धुरंधर
शिव ने जब भी किया है विषपान,
जग में तब – तब हुआ है मंगल गान.
नारायण को मिलीं लक्ष्मी,
देवों ने किया अमृत – पान.
जब गरल से बढ़ा जग में संताप,
केवल शिव ने रखा हलाहल का मान.
परमीत सिंह धुरंधर
शिव-शंकर बोले हमसे,
तुम मेरे प्रिये हो.
फिर क्यों डरते हो इतना,
क्यों भय से बंधे हो?
ये आँखे है तुमपे सदा,
सर्वदा, तुम्ही इनको प्यारे हो.
धन की तमन्ना,
नारी की कामना।
ना रखो मन में,
ये ही है वेदना।
की तुम मेरा अंश हो,
तुम मेरा तेज हो.
फिर क्यों डरते हो इतना,
क्यों भय से बंधे हो?
भटकना है तुम्हे,
बहना है तुम्हे, हर पल में निरंतर-2।
ना कोई बाँध सकेगा,
ना कोई दल सकेगा।
बस तुम्ही हो केवल,
इस जग में शिव -सा – धुरंधर-2।
तुम ही रूद्र हो,
तुम ही मेरा जोत हो.
फिर क्यों डरते हो इतना,
क्यों भय से बंधे हो?
परमीत सिंह धुरंधर