समंदर


दिल मेरा टूट गया,
समंदर में जाकर।
पर, अब भी तन्हा है समंदर,
मेरी तन्हाई को पाकर।
लहरों का धनी समंदर,
मुझ फकीर पे क्या हंसेगा।
वो समेटता है जिन मोतियों को,
मैं चलता हूँ उन्हें ठोकरों से उड़ा कर।

परमीत सिंह धुरंधर