हिन्दुस्तान


ना हिन्दू, ना मुसलमान,
ये वतन है हिन्दुस्तान।
यहाँ वीरों की गाथा पहले,
फिर बाद में वेद और कुरान।
यहाँ पहले विस्मिल -असफाक,
फिर बाद में,
मंदिर – मस्जिद के ज्ञान।

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परमीत सिंह धुरंधर

हिन्दुस्तान


हिन्दुस्तान के धरती पे,
हैं फैसलें दिलों के.
कहीं माँ है गाती लोरी,
कहीं बहन खड़ी है राखी लेके.
कहीं पिता को इंतज़ार है,
पुत्र के लौटने का.
कहीं रखती हैं जला के दिया,
कोई आज भी उनकी यादों का.
कहीं दुपट्टा लपेटते -लपेटते,
वो परायीं हो गयीं.
कही पतंगों के पेंच पे,
वो मेहँदी लूटा गयीं.
कहीं बैलों संग बहते हैं,
अपना सब कुछ भुला के.
कहीं फसलों के संग ही,
काट जाती हैं जवानी की रातें.
कहीं मोहल्ले – मोहल्ले,
हम पीछे – पीछे भागे।
कहीं बुर्के के अंदर से भी,
दिखतीं है वो मुस्कराते।
हिन्दुस्तान के धरती पे,
हैं फैसलें दिलों के.
डोली तो सैकड़ों उठाई,
पर हर बार,
भीगीं है कहार की आँखे.

परमीत सिंह धुरंधर

हम फिर भी लड़ेंगे काश्मीर के लिए


ये धर्म रहे,
या फिर ये धर्म न रहे.
कोई योगा करे,
या फिर योगा ना करे.
हम फिर भी लड़ेंगे काश्मीर के लिए,
क्यों की ये बना है,
सिर्फ मेरे हिन्दुस्तान के लिए.
कोई राम की पूजा करे,
या फिर पूजा न करे.
कोई गंगा में नहाये,
या फिर ना नहाये.
हम फिर भी सर कटाएंगे काश्मीर के लिए,
क्यों की ये बना है,
सिर्फ मेरे हिन्दुस्तान के लिए.
यहाँ हिन्दू रहें,
या फिर मुस्लिम रहें.
चाहे इस धरती पे,
सिक्ख-बौद्ध ही खेलें.
हम फिर भी लुटाएंगे,
सब कुछ अपना काश्मीर के लिए,
क्यों की ये बना है,
सिर्फ मेरे हिन्दुस्तान के लिए.
हम आपस में चाहे लड़ें,
या फिर न लड़ें.
हममें प्रेम हो,
या फिर ना हो.
हम फिर भी एक हो कर,
खून बहायेंगे अपना काश्मीर के लिए,
क्यों की ये बना है,
सिर्फ मेरे हिन्दुस्तान के लिए.

 

परमीत सिंह धुरंधर