ये धर्म रहे,
या फिर ये धर्म न रहे.
कोई योगा करे,
या फिर योगा ना करे.
हम फिर भी लड़ेंगे काश्मीर के लिए,
क्यों की ये बना है,
सिर्फ मेरे हिन्दुस्तान के लिए.
कोई राम की पूजा करे,
या फिर पूजा न करे.
कोई गंगा में नहाये,
या फिर ना नहाये.
हम फिर भी सर कटाएंगे काश्मीर के लिए,
क्यों की ये बना है,
सिर्फ मेरे हिन्दुस्तान के लिए.
यहाँ हिन्दू रहें,
या फिर मुस्लिम रहें.
चाहे इस धरती पे,
सिक्ख-बौद्ध ही खेलें.
हम फिर भी लुटाएंगे,
सब कुछ अपना काश्मीर के लिए,
क्यों की ये बना है,
सिर्फ मेरे हिन्दुस्तान के लिए.
हम आपस में चाहे लड़ें,
या फिर न लड़ें.
हममें प्रेम हो,
या फिर ना हो.
हम फिर भी एक हो कर,
खून बहायेंगे अपना काश्मीर के लिए,
क्यों की ये बना है,
सिर्फ मेरे हिन्दुस्तान के लिए.
परमीत सिंह धुरंधर
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