हुस्न को समझना आ गया


मेरे अश्कों पे तुम्हे मुस्कुराना आ गया,
मेरी जान, मुझे भी अब हुस्न को समझना आ गया.
जिसकी सत्ता है, तुम शौक़ीन उसकी,
चंद सिक्कों पे, तुम्हे आँचल ढलकाना आ गया,
मेरी जान, मुझे भी अब हुस्न को समझना आ गया.
नियत तुम्हारी हमसे अच्छा कौन समझेगा?
जिसे दौलत की चमक पे थिरकना आ गया.
मेरी जान, मुझे भी अब हुस्न को समझना आ गया.
औरत को वफादार लिखने वालों की कलम,
पे मुझे शक है,
जिन्हे चार दीवारों के अंदर चादर बदलना आ गया.
मेरी जान, मुझे भी अब हुस्न को समझना आ गया.

 

परमीत सिंह धुरंधर

हुस्न


नजाकत जहाँ हया छोड़ दे,
हया जहाँ वफ़ा छोड़ दे.
वो महफ़िल हैं दौलत की,
जहाँ हुस्न वादे-इरादे, इश्क़ छोड़ दे.

 

परमीत सिंह धुरंधर

हुस्न


हर फैसला लेती हैं,
लड़कियां,
सूरत और जेब का भार,
देख कर.
और कहती हैं की,
वो दिल ढूंढ रही हैं.

 

परमीत सिंह धुरंधर

किसी भी हुस्न में ऐसी विरह की आग नहीं


हम चाहें हुस्न वालों को,
मेरी ऐसी औकात नहीं।
सीधे -सादे इंसानों के लिए,
हुस्न के पास कोई सौगात नहीं।
इससे अच्छा की लगा दे जिंदगी,
अगर खुदा की राह में,
तो कोई बरक्कत हो जाए.
मक्कारी के अलावा,
हुस्न की झोली में कुछ भी नहीं।
कल रात मेरी कलम ने मुझसे कहा,
२५ दिन हो गए,
तुमने मुझे छुआ तक नहीं।
किसी के जिस्म को क्या छुऊँ?
किसी भी हुस्न में,
ऐसी विरह की आग नहीं।

 

परमीत सिंह धुरंधर

There is no desire left for you as my brain feels attraction for creativity and simplicity.

हुस्न


खूबसूरत जाल फैलाने पर,
फंसता हर मर्द है.
मगर चाँद सिक्के उछल कर देखो,
फिर हुस्न कैसे बदलता रंग है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

हुस्न वालों को बस छावं ढूंढते देखा है


मोहब्बत भले न मिली जिंदगी में,
नफरतों ने मुझे आगे बढ़ने का मुद्दा दिया है.
जमाना कर रहा है कसरते मुझे मिटाने की,
मेरी साँसों ने तो बस मुझे जिन्दा रखा है.
किसने कहा की हुस्न के आँचल में जन्नतों का द्वीप है,
हमने तो बस यहाँ साँसों को सिसकते देखा है.
रातों के अँधेरे में तो वफ़ा हर कोई निभा दें,
दिन की चिलचिलाती लू में,
हमने हुस्न वालों को बस छावं ढूंढते देखा है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

हुस्न-इश्क़ और खंजर


खूबसूरत लम्हों में लपेट के जो खंजर चला दे,
वो हुस्न तेरा है.
बिना जुल्फों में सोएं जो ओठों का जाम चख ले,
वो इश्क़ है मेरा।
तुझे गुरुर है जिस योवन पे,
वो ढल जाएगा एक दिन सदा के लिए,
और मैं यूँ हैं चखता रहूँगा योवन का रस,
चाहे रौशनी मेरी आँखों की या आँखे मेरी,
मुद जाए सदा के लिए.

 

परमीत सिंह धुरंधर

हुस्न और कुत्ता


एक भीड़ सी लगी है कुत्तों की,
और हुस्न वाले कहते हैं,
की पुरुष में अहंकार बहुत है.
सब – कुछ रख दिया है उनकी चरणों में,
लात खा कर भी वही पड़े हैं,
और हुस्न वाले कहते हैं,
की पुरुष में अहंकार बहुत है.
सबसे बड़ी अहिषुण्ता, दोगलापन है ये,
नारी ही उजाड़ रही है घर नारी का,
और हुस्न वाले कहते हैं,
की पुरुष को जिस्म की भूख बहुत है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

हुस्न चारदीवारी में नहीं बंधती


हर खूबसूरत गली,
मंजिल नहीं होती।
कुछ राहें,
सदा अँधेरे में होती हैं,
पर उनपे,
जिंदगियां बर्बाद नहीं होती।
आंसू बहाने से,
आँखे ह्रदय के करीब नहीं होती।
हुस्न वाले मोहब्बत में,
किसी एक की नसीब में नहीं होती।
दस – घाटों से गुजरने के बाद,
नदिया प्यासी होती है सागर के लिए.
भरी जवानी में हुस्न,
चारदीवारी में नहीं बंधती।

परमीत सिंह धुरंधर