अहिंसा परमो धर्म:


जब सारी दुनिया गाती है,
अहिंसा परमो धर्म:.
मैं तिब्बत – तिब्बत गाता हूँ,
अकेला रह जाता हूँ
भीड़ छट जाती है, धीरे – धीरे,
मैं अकेला ही गाता हूँ.
कम्युनिष्टय JNU के,
सारे मौन हो जाते हैं.
मूक – बधिर बन के, फिर वो
गांधी के बन्दर से बन जाते हैं.
जब कम्युनिष्टय JNU के चिल्लाते हैं,
फासीबाद से डरना नहीं।
तब मैं चंद्रशेखर -चंद्रशेखर चिल्लाता हूँ,
अकेला रह जाता हूँ.
आइसा-SFI सब भाग जाते हैं,
मैं अकेला ही चिल्लाता हूँ.

 

परमीत सिंह धुरंधर

JNU की चार दीवारें


दम्भ नहीं,
अडिग विश्वास है,
पराजित करूँगा।
सिर्फ JNU की चार दीवारें,
ही भारत नहीं,
काश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत आबाद है.
जिंदगी के हर मैदान में,
मिटटी के हर प्रांगण में,
आज नहीं तो कल,
तुम्हे विस्थापित करूँगा.
ये अफवाह नहीं,
आरम्भ है.
यह भूचाल नहीं,
मेरा शंखनाद है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

मेनका और विश्वामित्र की प्रेम कहानी: सदियों से दबी और कुचली एक सच्चाई


ब्रह्मलोक में ब्रह्मा और माँ सरस्वती के सम्मुख देवराज इंद्रा और सारे देव चिंता ग्रस्त मुद्रा में.
इंद्रा: ब्रह्मदेव, अब आप ही हमारे संकट का समाधान कीजिये।
ब्रह्मदेव: इंद्रा, आपके आने से ही हम समझ गए की आप हमें धर्मसंकट में डालने आ गए हैं.
तभी नारद जी प्रकट हुए.
नारद: नारायण – नारायण, कौन सी संकट की बात कर रहे हैं आप ब्रह्मदेव।
ब्रह्मदेव: पुत्र नारद, इंद्रा देव की चिंता विश्वामित्र हैं.
नारद: अट्हास करते हुए. होना भी चाहिए। स्त्री का मोह रखने वाले ही स्त्री के खोने पे उसकी चिंता करते हैं जो वो उसके समीप रहते नहीं करते।
ब्रह्मदेव: नारद, तुम्हारे शब्द मेरे समझ के बहार हैं पुत्र.
नारद: देव राज, वो देव राज हैं जो अपने आश्रितों को, ख़ास कर स्त्रियों को, युद्ध का हथियार मानते हैं. खुद को बचाने के लिए उनका बलिदान देते हैं. रम्भा का बलिदान भी तो अब उन्हें रम्भा के रूप- रंग की याद दिलाता हैं. इसलिए वीर पुरुष नारी के प्रेम में मौत चुनते हैं, नारी का विरह नहीं, देव राज.
इंद्रा: देव मुनि आप हमेशा मुझ पर गलत आरोप लगाते हैं.
नारद: तो आप ही बताइए देव राज, रम्भा के लिए आप क्या कर रहें हैं? आज भी आप यहाँ हैं, तो सिर्फ विश्वामित्र को रोकने के लिए. मुझे पूर्ण विश्वास है की आपने अभी तक ब्रह्मदेव से रम्भा के संकट हरने का निवेदन नहीं किया होगा। आपसे ये उम्मीद ही बेकार है देव राज.
देव राज: ब्रह्मदेव, देख रहे हैं, देवऋषि मुझ पर कुपित है.
ब्रह्मदेव: तो आप बतावो देवराज, मैं क्या करूँ?
देव राज: आप विश्वामित्र की तपस्या भंग में हमरी मदद करें।
बर्ह्मदेव: देवराज, ये मेरा काम नहीं।
इंद्रा: ब्रह्मदेव, मैंने इस बार मेनका को भेजने का निर्णय लिया है.
नारद: ओह्ह, तो क्या देवराज रम्भा का हाल भूल गए या उन्हें मेनका पर विश्वास हैं?
इंद्रा: ना मैं रम्भा को भुला हूँ, ना मुझे ये विश्वास है की मेनका कुछ कर पाएंगी। इसलिए, मैंने काम देव को विश्वामित्र का मन असंतुलित करने को कहा है।
नारद: तो अब आप ब्रह्मदेव से क्या चाहते हैं? क्या आप उनको भी काम देव की तरह मन मोहने का काम कहेंगे।
देव राज: नहीं। मैं तो सिर्फ इतना चाहता हूँ की प्रभु कुछ करें ताकि काम देव और मेनका अपने उद्देश्य में सफल हो कर लौटें।
ब्रह्मदेव: हम क्या करे, देव राज. आप ही बताइए।
देव राज: अगर हमें ज्ञात होता, तो हम क्या आपके पास आते?
कुछ समय के मौन के बाद ब्रह्मदेव बोले, ” ठीक है देव राज, आप जाइये। हम देखते हैं की क्या कर सकते हैं.”
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ब्रह्मदेव: उठो विश्वामित्र, उठो. हम तुम्हारी तपस्या से प्रभावित हैं.
विश्वामित्र: ब्रह्मदेव आपके दर्शन से मैं अहोभाग हुआ.
ब्रह्मदेव: तुम वर मांगो विश्वामित्र और ये तप छोड़ दो.
विश्वामित्र: आप के दर्शन ही मेरा वर है. लेकिन तप कैसे छोड़ दूँ, इसके लिए ही तो राज – पाट छोड़ा है.
ब्रह्मदेव: तुम्हारा तप सृष्टि में प्रलय ला रहा है पुत्र. तुमने रम्भा को पाषाण बन दिया। इंद्रा तुम्हे तप-मार्ग से हटाने के लिए फिर से कोई अप्सरा भेजेगा।
विश्वामित्र: ब्रह्मदेव, आप मेरी चिंता न करे. मेरा मार्ग अब कोई नहीं बदल सकता। मैंने अपनी कितनी पत्नियों को छोड़ा है, उनका शरीर, उनका सौंदर्य, उनका लावण्या, उनका मोह -प्यार सब, कब का छोड़ दिया है. तो इंद्रा की सुंदरियों में वो बात कैसे होगी की मुझे बाँध ले.
ब्रह्मदेव: विश्वामित्र, हम जानते हैं की तुम्हे कोई नहीं डिगा सकता। लेकिन पुत्र, तुम्हारा नहीं डिगना मेरी पराजय होगी। मेरी अपूर्णता होगी। अथार्थ, हम त्रिदेवों की हार होगी। क्या तुम चाहते हो की मैं सारी उम्र सबकी हंसी का पात्र बन के रहूं?
विश्वामित्र: वो कैसे?
ब्रह्मदेव: मैंने स्त्री की सृष्टि ही इसलिए किया है की वो किसी के मन को भी छल ले, उसे अपने वश में कर ले और समय आने पे उसे धोखा दे. इन तीनो गुणों में पुरुष कुछ भी नहीं है स्त्री के आगे. स्वयं, मैं भी अपनी ही सृष्टि, एक नारी, के सौंदर्य से छाला गया और भगवान् शिव ने मेरे पांचवे मस्तक का नाश किया, मुझे उस मोह से मुक्त करने के लिए. क्या तुम चाहते हो, की सारी सृष्टि कहे की जिससे मैं नहीं बच पाया, उसे विश्वामित्र ने प्रभावहीन कर दिया?  ये मेरी और मेरी सृष्टि की हार होगी। उस के बाद मेरे लिए सृष्टि करना असम्भव होगा और प्रलय बिना आये भी सृष्टि रुक जायेगी। पुत्र, मेरी एक विनती स्वीकार करो. मेरे लिए, मेरी सृष्टि के लिए, नारी से हार स्वीकार कर के, मेरी सृष्टि को सम्पूर्ण रहने दो.
विश्वामित्र: तो आप बताइए, मैं क्या करूँ?
ब्रह्मदेव: पुत्र, इस बार जब मेनका आये तुम्हारा मन मोहने, तो उसका हाल रम्भा सा ना करना। तुम उसका प्रणय स्वीकार कर लेना। स्त्री की जीत में तुम्हारी हार नहीं, क्यों की मैंने ऐसी ही सृष्टि बनायीं है. लेकिन मेनका को त्रिस्कार करने से नारी के साथ मेरी भी हार होगी।
विश्वामित्र: इतनी सी बात ब्रह्मदेव। जाइये, यही होगा। मैं मेनका का प्रणय स्वीकार कर लूंगा और जब तक आप कहेंगे उसके साथ गमन करूँगा।
ब्रह्मदेव: धन्य हो विश्वामित्र, तुम धन्य हो. तुम सही अर्थों में ब्रह्मऋषि हो. जिसने आज स्वयं ब्रह्मदेव की मनोकामना पूर्ण की. पुत्र मैं तुम्हे कुछ देना चाहता हूँ. इंकार मत करना।
ब्रह्मदेव: मैं तुम्हे आशीष देता हूँ की तुम सारे ब्रह्मऋषियों के सप्तऋषि बनके सृष्टि के अंत तक इस जगत में उदयमान रहोगे।
विश्वामित्र: जैसी आपकी मनोकामना, ब्रह्मदेव।
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विश्वामित्र की चारो तरफ गुणगान होने से, ब्रह्मणनों में हाहाकार मच जाता हैं. और ब्राह्मणों ने फिर चतुराई दिखाते हुए, इंद्रा के सहयोग से, मेनका को समझाया की वो विश्वामित्र को छोड़ दे. उन्होंने मेनका को ये लालच दिया की आपका नाम घमंडी विश्वामित्र का घमंड तोड़ने के लिए सदा -सदा अमर रहेगा। सृष्टि आपका आभार मानेगी। ब्राह्मणों ने कहा की विश्वामित्र का प्रेम सच नहीं और उसने ब्रह्मदेव के कहने में तुम्हारा पाणिग्रहण किया है. इंद्रा ने मेनका को अप्सराओं में सबसे महान बनने  का लालच दिया।
इंद्रा : मेनका, जो काम रम्भा, उर्वशी नहीं कर सकी. वो तुमने किया। तुम्हारा सौंदर्य अनुपम है. तुम अप्सराओं की अप्सरा हो. क्या तुम चाहती हो की सारी सृष्टि तुम्हे ये कहे की तुम वो काम नहीं कर सकी? तुम्हारा विश्वामित्र के साथ रहना, तुम्हारी हार और विश्वामित्र की जीत होगी।
इंद्रा: सोचो मेनका, एक नारी होकर, क्या तुम नारी के अपमान का बदला नहीं लोगी? इस विश्वामित्र ने ना सिर्फ रम्भा का अपमान किया, बल्कि इसने हज़ारो अपनी पत्नियों को उनके यौवन की आग में अकेला छोड़ दिया। इसने उनका हाथ थामा था, लेकिन ब्रह्मऋषि कहलाने के लिए उनको बीच में छोड़ दिया। क्या तुम उन सभी के अपमान का बदला नहीं लोगी?
इस तरह दोस्तों, मेनका ने सम्पूर्ण नारी जगत के अपमान का बदला लेने के लिए, ना सिर्फ अपने प्रेम को, प्रेमी को छोड़ दिया, बल्कि अपनी नन्ही लड़की को बिना दूध पिलाए, स्वर्ग लौट गई. और अंत में ब्राह्माणवाद की जीत हुई.

 

परमीत सिंह धुरंधर

JNU और लोहियावादी मैं


मेरे वामपंथ (साम्यबाद) और JNU के वामपंथ में वो ही अंतर है जो गांधी और सुभास बोस में था और है.
वो जहाँ सशस्त्र क्रांति की मांग करते हैं, पूंजीवाद के खिलाफ, हर शोषण के खिलाफ। वहीँ जाने किस मज़बूरी में गांधी के अहिंषा परमो धर्म: में अपनी आस्था की दुहाई भी देते हैं। ये उनकी मज़बूरी है या दोहरापन, नहीं मालुम, लेकिन लोहियावादी कभी मजबूर नहीं होते। और ये दुर्भाग्य है की वामपंथ के गढ़ JNU ने ना राममनोहर लोहिया को अपनाया ना लोहियावादी मुझे।
परमीत सिंह धुरंधर

JNU:पर ये तिब्बत क्या है?


मुझसे तुम क्या लोगे?
मेरे जिस्म के सिवा।
सिसकी तो बहुत हूँ मैं,
JNU के परिसर में.
पर कब ये सिसकियाँ चाहत और ख़ुशी से,
सामान्य दिनचर्या में बदल गयी,
मैं नहीं जानती।
सिरहन, उत्सुकता,
कब मेरे त्वचा की ज्ञानेन्द्रियों ने,
अनुभव करना बंद कर दिया?
मैं नहीं जानती।
जवानी का मतलब यहाँ संघर्ष नहीं,
उल्लास, और हमारे गगनभेदी नारे हैं.
हमारी आवाज, हमारी भीड़,
क्या बदलाव चाहती है?
मैं नहीं जानती।
भय- डर, दमन, निरंकुशता,
क्या है?
मैं नहीं जानती।
परिसर में आने के पहले के ज्ञान,
मैंने सारे यहाँ धो डाले।
यहाँ मिले ज्ञानों से मैंने,
अति-ब्रह्मिणवाद, बहुसंखयकवाद,
जाना है.
पर ये तिब्बत क्या है,
मैं नहीं जानती।
यहाँ कार्ल मार्क्स तो पढ़ते हैं सभी,
पर लोहिया कौन है?
मैं नहीं जानती।

 

परमीत सिंह धुरंधर

हमें JNU नहीं, नालंदा चाहिए


हमें JNU नहीं,
नालंदा चाहिए।
तुम मांगते हो,
फ्रीडम ऑफ़ स्पीच,
हमें लोहिया चाहिए।
तुम चाहते हो दीवारें,
की साजिशें रचो.
हमें खुले आसमा के,
तले छत चाहिए।
तुम्हारे इरादें की हर फूल का,
अलग बगीचा हो.
हमें तो अनेक फूलों की,
एक ही माला चाहिए।
की अब वक्त आ गया है,
हमें चाणक्य चाहिए।
की हमें अफजल नहीं,
बस अशफाक चाहिए,
हर Crassa को अब यहाँ,
एक आफताब चाहिए।
अपनी आखिरी साँसों तक,
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई,
सबको पूरा और एक हिन्दुस्तान चाहिए।

 

परमीत सिंह धुरंधर

 

 

I will return my degree if antinational activists are not punished


The purpose of any university is to educate people how to make a better society, how to spread love and how to protect their country. Otherwise what is the important of reading history of Nalanda and Takshila. I always feel proud to mention that I am from JNU. However, after seeing so many videos, I am hurt and feeling down. How can one support someone who wants to break our motherland just in the name of freedom of speech? Is this really a freedom of speech? Do we need that? Do we want to divide the country on the name of such freedom? At the same time, we worship Gandhi and other freedom fighters who fought for independence of our country. Why do we still call Sardar Patel as Lauh Purursh, if we want to break our country? I really don’t want such freedom of speech and I will never support anything against my country.

If people still think that being different is the characteristic of JNU, I am sorry, but this time line has been crossed. If government and JNU administration are unable to punish the real culprits, I will return my all degrees from JNU. I would request government to kindly provide my degrees from other university. Moreover, at the time of admission, JNU authority should ask applicants to fill in the application form whether they are comfortable with anti-India activities in JNU or not. I am sorry but as a poet I always love my motherland and I am not comfortable. I am not forcing others but it is my right or freedom that I should get degree from university that is involved in building nation and not the speaker for freedom.

 

Parmit Singh Dhurandhar

Lalu Yadav and Sitaram Yechuri: who is the real Indian hero?


During the Sampurna Kranti in 1974, when police tried to kill Lok Nayak Jayprakash Narayan, Lalu Yadav jumped on his body to save his life. Apart from Lalu,  Sharad Yadav, Nitish and Sushil Kumar Modi were present; however, no one had courage or brain to do anything. JP had no children and he was 72 years old during the emergency. After this, therefore, JP developed a father feeling for Lalu. In the general election after emergency, in the Gandhi Maidan, Chhapra, JP asked people to vote Lalu as if they were voting for JP. Thus, Lalu entered in the Parliament for the first time at the age of 29.  I personally feel that whatever Lalu got in his political career is due to blessing of an old person.
Now lets take another story. Neta jee and Shayama Prasad Mukherjee are two prominent figures from Bengal. From JNU to Kerala, from parliament to village, educated people from Bengal love to talk about them and other intellectuals from Bengal. Every time they will explain that BJP and RSS are trying to change the history of India and only they are fighting against RSS-BJP. However, I am not surprised that there is not a single word from CPI, CPM, or any communist leader after Mamta Banerjee declassified all the files. They are busy against Gajendra Chauhaan in the FTII but they have no problem with Sunny Leone in Bollywood. From the last 60 years, they joined hand with Congress and helped them to spy the family of one of the brave son of India. When a mother of Shyama Prasad Mukherjee was crying, they were busy to worship Lenin.
The bottom of the story is that education from IIT can make you Kejriwaal but it will not provide a spine in your body to face the challenge.

Parmit Singh Dhurandhar