मैं ख़्वाब देखता हूँ


मैं ख़्वाब देखता हूँ,
मैं ख़्वाब देखता हूँ.
मेरे वृक्षों पे फल नहीं लगते,
फिर भी मैं उनको सींचता हूँ,
मैं ख़्वाब देखता हूँ.
बागों में अपने मैं आम नहीं,
शीशम लगता हूँ,
मैं ख़्वाब देखता हूँ.
मेरे तालाब की मछलियाँ,
किनारों पे तैरती हैं.
और मैं बीच पानी में,
बंसी डालता हूँ,
मैं ख़्वाब देखता हूँ.
हर शाम हारता हूँ,
युद्ध जीवन का.
पर नयी सुबह में,
नयी रणभेरी छेड़ता हूँ,
मैं ख़्वाब देखता हूँ.

परमीत सिंह धुरंधर