दर्द


दर्द मिला तो मुस्कराने लगे
जख्म को कुछ यूँ छुपाने लगे.
बदला मौसम तो सभी बदल गए
हम भी दिखावे को बदलने लगे.
शौक रहा ना उनसे फिर मिलने का
हसरतों को दबा कर यूँ टहलने लगे.

RSD

दंश


ना मोक्ष चाहता हूँ, ना भोग चाहता हूँ,
ना सुख कोई, ना सवर्ग,
ना फिर मानव जीवन चाहता हूँ.
ना अब छीनो पुत्रों से उनके पिता,
ना मिले फिर किसी को,
ए विधाता,
मैं जो ये दंश झेलता हूँ.

परमीत सिंह धुरंधर