ए शिव तुम कहाँ हो-2?


सत्ता के जो लोभी हैं
उनका कोई रिश्ता नहीं।
जो लिख गए हैं कलम से
वो कोई इतिहास तो नहीं।

तुम क्या संभालोगे मुझे?
जब तुम्हारे कदम सँभालते ही नहीं।
तुम्हारा मुकाम अगर दौलत है तो
मेरी राहें वहाँ से गुजरती ही नहीं।

जमाना लिखेगा तुम्हे वफादार
पर हुस्न, जवानी में वफादार तो नहीं।
कुछ किस्से चलेंगे मेरे भी
पर उनमे आएगा तुम्हारा जिक्र तो नहीं।

ये अधूरापन ही है अब बस मेरा जीवन
पूर्णता की तलाश और चाहत तो नहीं।
तुम मिल भी जाओ किसी शाम तो क्या?
उस शाम में होगी अब वैसी बात तो नहीं।

Dedicated to Punjabi Poet Shiv Kumar Batalvi.

परमीत सिंह धुरंधर

वो ही ना बंध सके हमसे


समंदर को बाँध लिया मैंने
कलंदर को बाँध लिया मैंने
बस एक वो ही ना बंध सके हमसे
दिलो -जान से जिससे मोहब्बत किया मैंने.

Dedicated to my favorite poet Shiv Kumar Batalvi.

परमीत सिंह धुरंधर

कलमुही का ह्रदय तेरा बटुआ जानता है


चाँद मेरी आँखों का इशारा जानता है
क्या करता है Crassa ये जमाना जानता है?
अच्छा है की तू मेरी ना बनी, आज भी तेरे पीछे
दिल मेरा, दीवाना भागता है.

XXXXXXXXX part2 by wife XXXXXX

यूँ शहर का नशा ना किया कर Crassa
तेरे लिया दही का निकला है मक्खन ताजा।
यूँ सौतन के पास ना जाया कर राजा
सारी रात मुझको, मेरा जोबन तोड़ता है.
दर्द क्या है विरह का, ये मेरा ह्रदय जानता है?
कहाँ – कहाँ मुँह मारता है Crassa, ये जमाना जानता है?

यूँ जन्मों का बंधन ना तोड़ो तुम Crassa
तुम्हारे लिए उठाउंगी जीवन की हर पीड़ा।
यूँ सौतन के पास ना जाया कर राजा
सजी – सजाई सेज, अब गरल लगता है.
अच्छा है की मैं ही तेरी हाँ बनी
उस कलमुही का ह्रदय, बस तेरा बटुआ जानता है.

This poem is dedicated to Panjabi poet Shiv Kumar Batalvi.

परमीत सिंह धुरंधर