मेरे वामपंथ (साम्यबाद) और JNU के वामपंथ में वो ही अंतर है जो गांधी और सुभास बोस में था और है.
वो जहाँ सशस्त्र क्रांति की मांग करते हैं, पूंजीवाद के खिलाफ, हर शोषण के खिलाफ। वहीँ जाने किस मज़बूरी में गांधी के अहिंषा परमो धर्म: में अपनी आस्था की दुहाई भी देते हैं। ये उनकी मज़बूरी है या दोहरापन, नहीं मालुम, लेकिन लोहियावादी कभी मजबूर नहीं होते। और ये दुर्भाग्य है की वामपंथ के गढ़ JNU ने ना राममनोहर लोहिया को अपनाया ना लोहियावादी मुझे।
परमीत सिंह धुरंधर