भारत-रक्षक स्कंदगुप्त


पिता तुम्हारी चरणों में शत -शत बात नमन मेरा
मैं लौटूंगा समूल मिटा के हूणों का कुल-बल सारा।
क्षण भर भी मुझे मोह नहीं सत्ता के इस सुख का
अक्षुण्य रखूँगा मगध को बस ये ही हैं स्वप्न मेरा।

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