पुत्र


पुत्र वही जो पिता के अपने चरणों में अभिमान करे,
चाहे शिव ही साक्षात् समक्ष हो,
वो पिता का ही गुणगान करे.

कुछ मोल नहीं इस जग में,
चाहे अमृतवा का ही पान हो,
वीर वही जो पिता के पाने शत्रुओं का संहार करे.

 

परमीत सिंह धुरंधर

पिता – पुत्र


ज्ञान – विज्ञान सब झूठ है,
सच्चा बस प्रेम है मेरा।
पुत्र तुम्हे पाने को,
मैंने खोया है कितने स्वप्न मेरा।
पुत्र तुम कर्तव्यगामी बनो,
बस यही होगा गर्व मेरा।

 

परमीत सिंह धुरंधर

मैं विष धारण कर लूंगा अपने कंठ में


अपने पिता के प्रेम में पुकारता हूँ प्रभु शिव तुम्हे,
मेरे पिता को लौटा दो,
मैं विष धारण कर लूंगा अपने कंठ में.
मुझे भय नहीं मौत का, ताप का,
बस मुझे गोद दिला दो फिर वही,
मैं विष धारण कर लूंगा अपने कंठ में.

 

परमीत सिंह धुरंधर

छपरा से कटिहार तक


माँ ने कहा था बचपन में,
तुम लाल मेरे हो लाखों में.
तुम्हे पा कर मैं हर्षित हुई थी,
नाचे थे पिता तुम्हारे, जब आँगन में.
गोलिया चली थीं, तलवारे उठीं थी,
छपरा से कटिहार तक.
बाँट रहे थे सप्ताह – भर, रसोगुल्ला,
बड़े -पिता तुम्हारे, कोलकत्ता में।
दादी ने चुम्मा था माथा तुम्हारा,
गिड़ – गिड़ के पीपल पे.
दादा ने फुला के सीना,
खोल दिया था खलिहान, जन – जन में.

 

परमीत सिंह धुरंधर

नूरे – धुरंधर हूँ मैं


जंग तो होगी,
चाहे पूरी दुनिया एक तरफ,
और मैं अकेला ही सही.
नूरे – धुरंधर हूँ मैं,
पीछे हटने का सवाल ही नहीं।
मौत का भय मुझे क्या दिखा रहे हो,
लाखो दर्द में भी जो मुस्कराता रहा,
खून उसका हूँ मैं,
झुकने का सवाल ही नहीं।

 

परमीत सिंह धुरंधर

पिता के प्यार का प्याला


हर पुत्र को पिता के प्यार का प्याला मिलना चाहिए,
ए खुदा,
जब तक पुत्र की प्यास न मिट जाए,
पिता – पुत्र का साथ बना रहना चाहिए।
सर्प – दंस से भी ज्यादा जहरीला है,
पिता से पुत्र का विछोह।
ए खुदा,
इस जहर का भी कोई तो काट होना चाहिए।

परमीत सिंह धुरंधर

पिता-पुत्र की जोड़ी


वो पिता-पुत्र की जोड़ी,
बड़ी अलबेली दोस्तों।
एक अर्जुन,
एक अभिमन्युं दोस्तों।
एक ने रौंदा था,
भीष्म को रण में.
एक ने कुरुक्षेत्र में,
कर्ण-द्रोण को दोस्तों।

परमीत सिंह धुरंधर

पुत्र का गर्व


सिंह सा गर्जना करता हुआ,
जब तू चलता है धरती पे.
गर्व होता है मुझको ए पिता,
पुत्र तुम्हारा कहलाने में.

परमीत सिंह धुरंधर