लड़की वो थी केरला की,
कर गयी हमसे चालाकी।
आँखों से पिलाया हमको,
और बाँध गयी फिर राखी।
लड़की वो थी पंजाब की,
पूरी – की – पूरी शहद में लिपटी।
बड़े – बड़े सपने दिखलायें,
और फिर बोल गयी हमें भैया जी.
लड़की वो थी बंगाल की,
कमर तक झुलाती थी चोटी।
शरतचंद्र के सारे उपन्यास पढ़ गई,
सर रख के मेरे काँधे पे.
और आखिरी पन्ने पे बोली,
तय हो गयी है उसकी शादी जी.
लड़की वो थी हरियाना की,
चुस्त – मुस्त और छरहरी सी.
हाथों से खिलाती थी,
बोलके मुझको बेबी – बेबी,
और बना लिया किसी और को,
अपना हब्बी जी.
लड़की वो थी दिल्ली की,
बिलकुल कड़क सर्दी सी.
लेकर मुझसे कंगन और झुमका,
बस छोड़ गयी मेरे नाम एक चिठ्ठी जी.
परमीत सिंह धुरंधर