हुश्न


अगर कजरा उनसे जो कर दे शिकायत,
तो कजरे को काली कहेंगी।
जो मैं कर दूँ उनके हुश्न की तारीफ़,
तो आगे बढ़ के मुझको गाली पढ़ेंगी।
अगर गजरा उनसे जो कर ले मोहब्बत,
तो इसे गजरे की नादानी कहेंगी।
जो मैं थाम लूँ लहर अपने दिल की,
तो इसे धुरंधर की ठंडी जवानी कहेंगी।
वो सजती हैं खुद को ही देख आईने में,
अपने योवन पे इठलाती हुई.
अगर आईना कह दे जो सच्चाई,
तो फिर उसे बस सीसा कहेंगी।
जो मैं सूना दूँ हाले दिल उन्हें अपना,
तो फिर मुझे एक झूठा ही कहेंगी।
मिलती है वो सबसे हंस के हंसा के,
बस रखती है हमसे ही दूरियां।
जो मैं पूछूं राज उनके इस भेद का,
तो अपनी अदा को वो हया ही कहेंगी।
जो थाम लूँ मैं बढ़ के कलाई,
तो परमीत को बेहया ही कहेंगी।
चलती हैं ढलका के आँचल को सीने से,
और परचित की इसे शैतानी कहेंगी।
जो मैं मिटा दूँ उनपे अपनी जिंदगी,
तो जवानी की मेरी ये नादानी ही कहेंगी।