तुम हो दिल में,


तुम इस कदर उतर गये हो दिल में,
अब क्या रखा है खोंने  में.
तुम अगर मिल जावो हमें,
क्या रखा है फिर ज़माने में.
हर साँस की मेरी तुम ही चाहत,
हर रात की मेरी तुम ही हो आहट,
तुम खनका दो जो अपने पायल,
तो क्या रखा है मदिरालय में.
नयनों से अपने सींचती हो मेरे जख्मों को,
अब पास आ कर कह दो की मेरे जख्म हैं तुम्हारे,
तुम लहरा दो अप्पना आँचल,
तो, परमित, फिर सावन में क्या रखा है

एक इल्तिज्ज़ा


एक इल्तिज्ज़ा है दिल की,
मेरे पास आइये,
कुछ दुरी भी रहे ,
कुछ शर्म भी रहे,
मैं अपनी साँसों को न रोक सकूँ,
आप अपनी बोझल पलकों से न कह सकें।
एक इल्तिज्ज़ा है दिल की,
की अपन जुल्फों में बांध लीजिये,
मैं बादल बनके न अम्बर पे उड़ सकूँ,
आप तितली बनके न खो सकेन.
एक इल्तिज्ज़ा है दिल की,
दो बूंद अपने प्याले से छलका दीजिये,
मैं अपनी प्यास न मिटा सकूं, परमित
आप न फिर मुझे पिला सकें।