जब प्रेम प्यास बन जाए,
तो दाल 250 रूपये किलो मिले,
या फिर 950 रूपये किलो मिले,
क्या फर्क पड़ता है?
तो अपना – अपना प्रेम सम्भालो दोस्तों,
मैं आज तक रोता हूँ, बस एक उनको खोकर।
दाल गलती है, एक दिन सबकी गल जायेगी,
दाल के चक्कर में भात ना गवाना दोस्तों।
भथुआ पे भात खाओ, तीसी पे भात खावों,
रोटी है तो थोड़ा साग भी साथ खाओ.
बस दाम बढ़ा है, कोई अकाल नहीं है यह,
की दाल के चक्कर में रात न गवाना दोस्तों।
मैं आज तक रोता हूँ, बस एक रात गवाकर।
जब अधरों पे प्यास जग जाए,
तो जाम बेवफाई का हो,
या वफ़ा का,
क्या फर्क पड़ता है?
तो अपना – अपना प्रेम सम्भालो दोस्तों,
मैं आज तक रोता हूँ, बस एक जाम ठुकराकर।
परमीत सिंह धुरंधर