जिन्दगी


धुवाँ-धुवाँ सी हैं जिन्दगी,
कभी जमीं तो कभी,
आसमां पे है जिन्दगी.
सजाती तो है रोज वो खुद को,
आइना देख के,
कभी हसरते-जवानी,
तो कभी बाजारू-दारु है जिन्दगी, परमित.

उठो और लड़ो


उठो और लड़ो,
इसलिए नहीं की ,
तुम किस्मत के धनी हो.
उठो और लड़ो ,
इसलिए की तुम,
सत्य के साथी हो.
उठो और लड़ो,
इसलिए नहीं की,
तुम सत्ता के पुजारी हो.
उठो और लड़ो,  परमित
इसलिए की तुम,
सत्य के सिपाही हो……

हल्दी


ना निखारा करो तन को अपने,
यूँ तुम हल्दी लगा के.
की बचपन से ही पीता हूँ, मैं
दूध में हल्दी मिला के.
यूँ ही नहीं है मेरा नाम Crassa,
Cross लगाएँ है मैंने हाजारों ,
बस हल्दी छुआ के, परमित.