तेरे अंगों पे कहीं पटना,कहीं छपरा तो कहीं सीवान दीखता है


तू मुस्कराये तो पुरे के पुरे मानचित्रा पे
पूरा -का – पूरा बिहार दीखता है.
तुम्हारे मम्मी -डैडी पूजनीय ही नहीं
सिर्फ मेरे लिए भगवान् ही नहीं
तुम्हारे मम्मी -डैडी, दादा-दादी, भाई-बहन
उनमे पूरा -का-पूरा ससुराल दीखता है.
तू शर्माए तो वो सर्दी की रात
वो बोरसी की आग
और उसमे पकता वो लिट्टी दीखता है.
तेरे नयन जैसे मेरे गावँ के पोखर
तेरी कमर, जैसे चलनी में चोकर
तेरी कमर पे झूलती ये चोटी
पीपल पे वो मेरा झूला दीखता है.
तू पूरी -की-पूरी मुझे मिल जाए
तो मुझसे धनवान कौन, बता?
की तेरे अंगों पे कहीं पटना,
कहीं छपरा तो कहीं सीवान दीखता है.

RSD

छपरा का धुरंधर


अदाओं में वो हैं समंदर
तो दर्द के हम भी सिकंदर.
हुस्न पे उन्हें है अपने गुमान
तो छपरा के हम भी हैं धुरंधर।

RSD

लिट्टी-चोखा और चंद्रशेखर आजाद


पातर कमरिया पे गमछा लाल
मोछिया पे ताव जैसे चंद्रशेखर आजाद।
सखी, का करि आपन राजा के बखान
मार करे लिट्टी-चोखा पे आ, हमार
होंठवा के कहेलन आम के आचार।

RSD

लाठाधीश


वीर तुम धनानंद, लाठाधीश हो.
उठो, बढ़ो ऐसे की सिकंदर तक खौफ हो.
जुल्म की तलवार लिए आ गया है वो
भारत की सरहदों पे कोई हाहाकार हो
उसके पहले लठ से अपने प्रहार कर दो.
वीर तुम धनानंद, लाठाधीश हो.
उठो, बढ़ो ऐसे की सिकंदर तक खौफ हो.

देव तक तुमसे यहाँ भयभीत हैं
पुराणों में वर्णित तुम्हारा गीत है.
मगध के मस्तक के तुम चाँद हो
यदुवंशियों के बल का तुम प्रमाण हो.
तो उठो और अपने मुष्ठ का एक प्रहार दो.
वीर तुम धनानंद, लाठाधीश हो.
उठो, बढ़ो ऐसे की सिकंदर तक खौफ हो.

उस तरफ तलवारे थी जंग के लिए
इस तरफ से लठ लिए लाठाधीश थे चले.
गंगा की लहरों ने भी देखा था वो दिन
धरा पे लठ के प्रहार से, उस तरह यवन थे गिरे।
बिना खून बहाये ही रण को जीत लो.
वीर तुम धनानंद, लाठाधीश हो.
उठो, बढ़ो ऐसे की सिकंदर तक खौफ हो.

Rifle Singh Dhurandhar

छपरा का छबीला


दिल का अनाड़ी
शहर में खिलाडी
करता हूँ साइकल की सवारी
ऐसा मैं बिहारी
ना अटकी है, ना अटकेगी
कहीं भी, कभी भी अपनी गाड़ी।

छपरा का छबीला
पटना का बादशाह
मराठों संग सजाई थी सल्तनत अपनी
ऐसा मैं बिहारी
ना अटकी है, ना अटकेगी
कहीं भी, कभी भी अपनी गाड़ी।

उस्तादों को पटका
हुस्नवालों को रंगा
दोस्तों का हूँ यार जिगड़ी
ऐसा मैं बिहारी
ना अटकी है, ना अटकेगी
कहीं भी, कभी भी अपनी गाड़ी।

भीड़ में अकेला
अकेले में भीड़
दोस्तों ने कहा, “मानुस है भारी”
ऐसा मैं बिहारी
ना अटकी है, ना अटकेगी
कहीं भी, कभी भी अपनी गाड़ी।

Rifle Singh Dhurandhar

मरदा बोले मोदी, माउगि वो बोले मोदी


अरे मरदा बोले मोदी, माउगि वो बोले मोदी
सुन हो भैया, फेनु मोदी के सरकार ही नु बनी।
बुढ़वो चुने मोदी, जवनका भी चुने मोदी
सुन हो भैया, पूरा बिहार मोदी के ही त चुनी।

घूँघट में भी मोदी, मूँछवा पे भी मोदी
सुन हो भैया, बिहार में कमल ही खिली।
ना मिलिअन पप्पू, ना दिखिअन फिर पप्पू
सुन हो भैया, बिहार में कमल ही खिली।

Rifle Singh Dhurandhar

छपरहिया


हम छपरहिया
जैसे घूमे हैं पहिया
अरे, दुनिया घुमा दें.

अरे तीखें नैनों वाली
चोली की लाली
अरे हम चाहें तो
आँखों का सुरमा चुरा लें.

यूँ तो भोले -भाले
हैं हम सीधे -सादे
आ जाएँ खुद पे
तो बिजली गिरा दें.

Rifle Singh Dhurandhar

सुशांत सिंह राजपूत की जंग जारी रखेंगें


मैं तो मुंबई से पहले ही परास्त हुआ
तुम तो मुंबई तक पहुँच गए.
मैं अपने पहली ही जंग में हार गया
तुम तो कितने जंग फतह कर गए.
यह लड़ाई न मेरी है, ना यह जंग तुम्हारी थी
ये जंग हमारी है, हाँ ये जंग हम सबकी है.
यह जंग है,
हमारे सपनों की उनके गुनाहों से
हमारे अधिकारों की उनकी सत्ता से
हम छोटे शहर की चींटियों की
इन जंगल के हांथियों से.
चाणक्य की
धनानंद के उन्माद और अहंकार से.

आज भले हम हार गए
आज भले दूर -दूर तक
हमारे सितारे धूमिल हैं.
मगर हम शिवाजी के छोटे झुण्ड में आते रहेंगें
और लुटते रहेंगे इनके महलों को
इनकी खुशियों को, तब तक
जब तक औरंगजेब की इस सत्ता
को नष्ट ना कर दे,
तबाह ना कर दे.

हम चीटिंयां हैं चाणक्या के
हम चिड़ियाँ हैं गुरु गोबिंद सिंह जी के
हम कटेंगे, हम गिरेंगे, पर लड़ेंगें तब तक
जब तक विजय श्री हमारी नहीं।
आज चाहे जितना उत्सव माना लो मेरे अंत का
कल तुम्हारा जयदर्थ सा अंत करेंगे।

परमीत सिंह धुरंधर 

अपने बेगम की चोली का रंग लाल हूँ


बेलगाम, बेधड़क, बेदाग़, बेबाक हूँ
हर खेल का माहिर धुरंधर
छपरा का मस्तान हूँ
जी हाँ, मैं खुद में एक बिहार हूँ.

रंगों से बना नहीं
मगर हर एक रंग में शामिल हूँ
कुवारियों के आँखों का ख्वाब
विवाहितों के दिल की कसक
मैं अपने बेगम की चोली का रंग लाल हूँ।
जी हाँ, मैं खुद में एक बिहार हूँ.

नागार्जुन का विद्रोह
दिनकर की आवाज हूँ
बुद्ध, महावीर का तप – त्याग
गुरु गोविन्द सिंह जी और चाणक्य
का शंखनाद हूँ.
जी हाँ, मैं खुद में एक बिहार हूँ.

पनघट पे गोरी की मुस्कान
मस्ती में बहता किसान हूँ
पुरबिया तान, खेत -खलिहान
फगुआ में भाभियों की सताता
निर्लज -बदमाश हूँ.
जी हाँ, मैं खुद में एक बिहार हूँ.

परमीत सिंह धुरंधर 

छपरा के जलेबी-2


अरे झूठे कहेला लोग इनके निर्मोही
पिया बारन धुरंधर इह खेल के.
बिना उठईले घूँघट हमार
अंग -अंग चुम लेहलन अपना बात से.

परमीत सिंह धुरंधर