मैं
मय हो जाता
तू अगर
मेरा ख़ास नहीं होता।
भीड़ तो बहुत है
इस बाजारे-जहाँ में दोस्त
मगर फिर अपनी दोस्ती का
ये अंदाज नहीं होता।
गुफ्तुगू करने के लिए बेक़रार है कई
मगर कोई तुझसा भी दिल के
करीब नहीं आता.
Related to my journey through the College of Agriculture, Pune.
परमीत सिंह धुरंधर