वो शरारत करती रहीं
नजरों के इस खेल में
हम इतने गरीब थे
बैठे रहें उनसे उम्मीद में.
परमीत सिंह धुरंधर
वो शरारत करती रहीं
नजरों के इस खेल में
हम इतने गरीब थे
बैठे रहें उनसे उम्मीद में.
परमीत सिंह धुरंधर
दिल समझेगा तेरा जिस दिन मुझको
उस रात तू मेरी बाहों में होगी
अरे बन के नवयौवना तू
सेज पे मेरे फिर पिघलेगी।
परमीत सिंह धुरंधर
कुछ आपके करीब से गुजरने का मौक़ा मिले
कुछ आपके पहलु में ठहरने का मौक़ा मिले
कभी निगाहों, कभी बाहों
कभी आपकी जुल्फों से खेलने का कोई मौक़ा मिले
ठहर जाए जिंदगी वो पल बनकर
जिस पल में तुझे अपना कहने का मौक़ा मिले।
परमीत सिंह धुरंधर
बारिश की बूंदें भी तड़प उठती है तन पे गिर के
ना चमको मेघों में तुम बिजली से छुप के
उतर आवो बाहों में
नशों में घुलने को मदिरा बनके
कब तक चमकेगी मेघों के बीच यूँ बिजली बनके
उतर आवो बाहों में
नशों में घुलने को मदिरा बनके।
परमीत सिंह धुरंधर
रोजे खेला खेलेली संगे हमरा नन्दो
चिठ्ठी पठावे ली रोजे यार के
लिफाफा पे हमार नाम लिख के.
रोजे खेला खेलेली संगे हमारा सासु
रोजे दबवा के कमरिया
कोहरे ली ससुर के आगे खाट पे.
परमीत सिंह धुरंधर
लूट जाइ जोबना, बिकाइ खटिया
ई ह छपरा रानी, मत मिलावअ नजरिया।
यहाँ खेल -खेल में मिलिहन धुरंधर
बात – बात में यहाँ निकले दुनालिया।
खुल जाइ चोली, हेराइ नथुनिया
ई ह छपरा रानी, मत लचकावा कमरिया।
रख ल मुख पे घूँघट आ पत्थर दिल पे
ई ह छपरा रानी, यहाँ हल्दी लागेला उड़ा के चिड़िया।
परमीत सिंह धुरंधर
ना सम्भालों नजर को शर्म से आकर इस मुकाम
बहकने लगे हैं कदम तो फिर कैसा – कोई पड़ाव?
खेल लेने दो हमें इन जुल्फों से बस एक शाम
न जाने कब जहर सा काम कर दे, तुम्हारी मोहब्बत का ये जाम?
परमीत सिंह धुरंधर
लचकावे लू कमरिया जैसे मुजराईल अमवा के डाल
रानी बहकावा तारु जियरा, दे के नैनन से प्रेम-पैगाम।
परमीत सिंह धुरंधर