अर्ज किया है
किस्मतें – जंग देखिये।
उनका शहर
और मेरा रंग देखिये।
दौलत से सजी महफ़िलों
की वो चाँद हैं.
उनकी अमीरी की चमक
और मेरी गरीबी का हुनर देखिये।
परमीत सिंह धुरंधर
अर्ज किया है
किस्मतें – जंग देखिये।
उनका शहर
और मेरा रंग देखिये।
दौलत से सजी महफ़िलों
की वो चाँद हैं.
उनकी अमीरी की चमक
और मेरी गरीबी का हुनर देखिये।
परमीत सिंह धुरंधर
छोटी सी उम्र में
आई जवानी चढ़-चढ़ के.
कैसे मैं सम्भालूं?
इस पतली कमर पे.
छेड़े हैं हवाएं
लड़ाएं हैं निगाहें।
गली – गली में
बूढ़े भी बढ़-बढ़ के.
दरजी न बाज आये
अपनी दगाबाजी से.
नाप ले ला चोली के
जोबन मल – मल के.
छोटी सी उम्र में
आई जवानी चढ़ – चढ़ के.
कैसे मैं सम्भालूं?
इस पतली कमर पे.
परमीत सिंह धुरंधर
ये आँसू मेरी पलकों पे प्रेम के प्यासे हैं
ये कह रहें हैं, हम कितने तन्हा – अकेले हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
जो दरिया अपना अंदाज बदल ले
तो सागर प्यासा रह जाएगा।
जो भौंरा गर न बहके
तो कलियों का ख्वाब, ख्वाब रह जाएगा।
जिंदगी का ये फलसफा है
कोई, किसी के काम नहीं आएगा।
किस रब से माँगूँ की लौटा दे वो बचपन?
झूले तो बहुत हैं, वो गोद अब नहीं मिल पायेगा।
कितना दर्द है जिंदगी में, किसे सुनाऊँ बैठ कर
कौन है जो पिता बनकर मन को बहलाएगा?
सोचा नहीं था यादें इतना रुलायेंगी
तुम बिन जिंदगी, कृष्ण-बिन-द्वारका सा सूना रह जाएगा।
परमीत सिंह धुरंधर
दौलत की चमक किसे नहीं भाती?
ये शहर है दोस्तों, यहाँ रोशनी नहीं आती.
रिश्तों की राहें तो बहुत हैं यहाँ
मगर कोई राह दिल तक नहीं जाती।
परमीत सिंह धुरंधर
पतली कमर पे जवानी का नशा
ढूंढ रहीं हूँ गली – गली में पिया।
सूना है कोई है छपरा का धुरंधर
सखी
उसी के संग अब बिछाऊँ गी खटिया।
कैसे पड़ गयी तू उसके हथकंडे?
निर्दयी, निर्मोही, वो तो है शातिर बड़ा.
तू जल रही है शायद
आफताब ने कहा की वो है भोला बड़ा.
कैसे पड़ गयी तू इन दोनों के हथकंडे?
दोनों की यारी, है दांत-कटी यहाँ।
परमीत सिंह धुरंधर
हर दर्द का रस पीना है
यही गीता का संदेस है.
विषपान से ही आता
कंठ पे कालजयी तेज है.
जितना तपती है धरती
सींचता उसे उतना ही मेघ है.
हर दर्द का रस पीना है
यही गीता का संदेस है.
परमीत सिंह धुरंधर
मैं
मय हो जाता
तू अगर
मेरा ख़ास नहीं होता।
भीड़ तो बहुत है
इस बाजारे-जहाँ में दोस्त
मगर फिर अपनी दोस्ती का
ये अंदाज नहीं होता।
गुफ्तुगू करने के लिए बेक़रार है कई
मगर कोई तुझसा भी दिल के
करीब नहीं आता.
Related to my journey through the College of Agriculture, Pune.
परमीत सिंह धुरंधर
भींग गयी चोली बथान में तेरे
कैसे अब घर जाऊं राजा इस राह से?
डोका फिरला का तुझा, सांग तू मला
चारपाई बिछी है, संग रात काट ले.
छपरा शहर में नाम है मेरा
बदनाम ना कर दे कही तू एक रात में.
डोका फिरला का तुझा, सांग तू मला
तू फक्त तू माझा प्रेम आहे.
Dedicated to Dada Kondke, whose song “पानी थीम – थीम गरा” is considered as vulgar. However, I enjoyed the song throughout my college life.
परमीत सिंह धुरंधर
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी सखी
रात – रात भर सुलगाये चिंगारी सखी.
मैं खाऊं रोटी, वो तरकारी सखी.
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी सखी-२.
कभी मांगे बोरसी, कभी चूल्हा के आगी सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी सखी.
कभी दुआरा, कभी अंगना में डाले चारपाई सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी सखी.
मैं बंगालन सुन्दर – सलोनी,
वो काला – निठल्ला बिहारी सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी रे सखी.
रोज रख दे मेरी कमर पे कटारी सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी सखी.
कभी मांगे मुर्ग – मसल्लम, कभी चुरा और दही सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी रे सखी.
गयी थी चराने अपनी गाय, फंस गयी उसके बथानी सखी
मेरा बलमा बड़ा है अनाड़ी रे सखी.
परमीत सिंह धुरंधर