निगाहों का नजराना


मोहब्बत की जो बाते की उनसे, तो सितारों ने अपनी राहें बदल दीं
सितारों को जो मैं बदलने चला, तो उसने अपनी मोहब्बत बदल दी.

समंदर को पता है मुझे शौक है किताबों का
समंदर ही बड़ा शातिर, भेजता है मुझे निगाहों का नजराना।

परमीत सिंह धुरंधर 

दुल्हन आज किसी और का


जिससे मोहब्बत में हमने प्रेम किया जन्मों का
वो हर कर ले गयी चैन मेरे मन का.

काली निगाहें थीं पतली कमर पे कातिल
दो तीर में ही हुआ क़त्ल मेरे दिल का.

मैं भी धुरंधर हूँ, यही सोच रण में उतरा
दो -पल में पराजित कर दर्प ले गयी मुख का.

ना रोक मुझे साकी, डूब जाने से अब तो
वो बन रही दुल्हन आज किसी और का.

परमीत सिंह धुरंधर 

हाँ, मैं ही बलात्कारी हूँ.


मैं पापी
मैं दुराचारी हूँ
हाँ, मैं ही बलात्कारी हूँ.
वो जो पैदल चल रहें हैं
धुप में, छावं की तलाश में
दिल्ली छोड़कर
पहुँचने को अपने गावं में
उनके ख़्वाबों को जलाकर
मिटाने वाला
मैं ही वो ब्रह्मपिचास, अत्याचारी हूँ.
हाँ, मैं ही वो बलात्कारी हूँ.

जिन्होंने सत्ता की कुर्सी पे
मुझे बैठाया
मेरे सपनो को मंजिल तक पहुँचाया
उनके मिटटी के घरोंदों को
उनके बच्चों के अरमानों को
रौंदने वाला, सितमगर, अनाचारी हूँ.
हाँ, मैं ही वो बलात्कारी हूँ.

परमीत सिंह धुरंधर 

पहाड बन गए


वो रूप अपना बिखेर कर बहार बन गयीं
हम दर्द को समेट कर दीवार बन गए.

वो इश्क़ में हमें एक रात दे गयीं
हम हमेट कर जिसे पहाड बन गए.

ना मिलती नजर तो, ना दीवाना होता
ये शहर हैं मेरा, मैं ना बेगाना होता।

किताबें चंद पढ़ कर वो बदलने लगे
निगाहों को फिर ना वो मयखाना मिला।

रहा दर्द दिल में सबब बनकर मेरे
फिर किसी और से मिलने का ना बहाना रहा.

किससे हां कहते दर्द-दिल अपना
दोस्तों का फिर वैसे ना जमाना रहा.

जाने दो जहां तक ये हवा जाए
ये घूँघट अब यूँ ना उठाया जाएगा।

समझ सको तो समझ लो कहानियाँ मेरी
मेरी खामोशियों में ये शहर अब गिना जाएगा।

परमीत सिंह धुरंधर 

वो तस्वीर ढूंढ कर देखिये


किस्मत का दौर देखिये
ख़्वाबों में दर्द देखिये
अगर आपने नहीं देखि है जिंदगी
तो कभी आकर मेरे घर देखिये।

हम दीवारों पे दर्पण नहीं रखते
हम अब उसमे अपना चेहरा नहीं देखतें
जुल्फों से घने इन अंधेरें में
कभी टहल कर देखिये।
अगर आपने नहीं देखि है जिंदगी
तो कभी आकर मेरे घर देखिये।

इजाजत ही नहीं देता है ये दिल
की ये हाथ किसी दिए को जलाये
ठोकरों के बीच से यूँ आप भी कभी
राहें बना कर देखिये।
अगर आपने नहीं देखि है जिंदगी
तो कभी आकर मेरे घर देखिये।

जब कभी ऐसे ही गुजर जाती हैं राते
खुली आँखों के सहारे
तो मेरी खिड़कियों पे, उषा की लाली
और गोरैयों का कलरव देखिये।
अगर आपने नहीं देखि है जिंदगी
तो कभी आकर मेरे घर देखिये।

कहीं मकड़ियों के जालें
कहीं बिखरें किताबों के पन्ने
इस तिलिश्म में कभी उनकी
वो तस्वीर ढूंढ कर देखिये।

परमीत सिंह धुरंधर 

मासिक -माहवारी


हम ही खगचर, हम ही नभचर
हमसे ही धरती और गगन
हम है भारत की संतान, मगर
भारत को ही नहीं है खबर हमारी।
पल -पल में प्रलय को रोका है, और
पल- पल ही है प्रलय सा हमपे भारी।

बाँध – बाँध के तन को अपने
काट – काट के पत्थर – पाषाण को
सौंदर्य दिया है जिस रूप को
उसके ही आँगन से निकाले गए,
जैसे मासिक -माहवारी।
पल -पल में प्रलय को रोका है, और
पल- पल ही है प्रलय सा हमपे भारी।

समझा जिनको बंधू – सखा
उन्होंने ना सिर्फ मुख मोड़ा
हथिया गए धीरे – धीरे, मेरी किस्मत,
तिजोरी, और रोटी।
पल -पल में प्रलय को रोका है, और
पल- पल ही है प्रलय सा हमपे भारी।

सत्ता भी मौन खड़ी है, भीष्म – द्रोण, कर्ण सा
निर्वस्त्र करने को हमारी पत्नी, बहू और बेटी
रह गया है बाकी
अब केवल कुरुक्षेत्र की तैयारी।
पल -पल में प्रलय को रोका है, और
पल- पल ही है प्रलय सा हमपे भारी।

परमीत सिंह धुरंधर 

मेरा इश्क़ जवान है


मुझे नहीं पता मेरे ईमान का रंग क्या है
पर मेरी आन, बाण और शान बिहार है.
उन्हें हुश्न का चाहे जितना गुमान हो
पर इस उम्र में भी मेरा इश्क़ जवान है.

परमीत सिंह धुरंधर 

हमर सैया जी


बकरिया चरावे गइलन हमर सैया जी
बकरिया के पीछे हमें भूल गइलन जी.
कोई जाके ढूंढे कहाँ गइलन जी?
भरल जवानी में हमें छोड़ गइलन जी.

परमीत सिंह धुरंधर 

बेताब हैं बनने को दादी


चंद – मुलाकातों में दिल भर गया सनम का
अब गैरों के दिल को बहलाया जाएगा।

शौक ऐसे चढ़ा है दिल पे उनके लबों का
ए साकी जाम ये हलक से उतर न पायेगा।

इन 18 सालों में वो बेताब हैं बनने को दादी,
मेरी इस बेताबी को अब नहीं मिटाया जाएगा।

ऐसे रौशन कर रही हैं वो अपने घर को
मेरे आँगन से अन्धेरा मिट न पायेगा।

और क्या होगी सितम की रात इससे बढ़कर?
मेरा दिया, मेरे घर को ही जला जाएगा।

ना पूछों दर्दे-दिल की दवा हमसे
तुमसे ऐसा दर्द न उठाया जाएगा।

परमीत सिंह धुरंधर