तपिश


तपिश बढ़ी धरती की तो बादल छा गए
बरसने ही वाले थे की हवा उन्हें उड़ा गए.
यूँ ही रह गयी प्यास मेरे अधरों पे
नजरें लड़ाते-लड़ाते वो मेहँदी रचा गए.

RSD

हक़


अब बारिशों का मौसम वैसा न रहा
रूह, रूह न रही, दिल, दिल न रहा.
सुखाता नहीं हूँ जिस्म को अब भींगने के बाद
दुप्पटे पे उनके मेरा हक़, अब वो हक़ न रहा.

RSD

यूँ ही धरा पे ये भीषण ठंड रहे


यूँ ही धरा पे ये भीषण ठंड रहे,
और तू यूँ ही मेरी बाहों में सिमटती रहे.
तेरी साँसे जीवित रखें मेरी नसों को,
यूँ ही मेरे रुधिर को गर्मी देती रहें।
मेरी पलकों पे तेरी ओठो का भार रहे,
बस एक रात ही सही सोनिये,
तेरी अधरें मेरी अधरों का आधार बनें।
ऐसे फिर रसपान करता रहूँ रात भर,
की जीवन भर गुमान रहे.

 

परमीत सिंह धुरंधर