मेरे गजानन


प्रभु, प्रभु आपके चरणों का मैं एक दास हूँ
मेरे गजानन, नित्य करता मैं आपको प्रणाम हूँ.
लाज रख लो मेरी मेरे गणपति,
मेरे गजानन, हर तरफ से हारा, मैं एक लाचार हूँ.
कुछ भी नहीं आँखों में मेरे आँसूं के सिवा
मेरे गजानन, हर तरफ से ठुकराया, मैं इतना कंगाल हूँ.
मौत से पहले एक जीत तो दे दो
मेरे गजानन, थका -हारा मैं इतना हतास हूँ.
कैसे छोड़ दूँ ये आस आपसे मेरे गणपति
मेरे गजानन, जब मैं केवल आपका ही ख़ास हूँ.

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मेरे देश की धरती


मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे – मोती
मेरे देश की धरती।
सींचे जिसको गंगा-जमुना, और कावेरी लहराती
मेरे देश की धरती।
जहाँ पतली कमर तरकस सी, नैनों से बाण चलाती
मेरे देश की धरती।
माँ के तन पे फटी है साड़ी, फिर भी माँ मुस्काती
मेरे देश की धरती।
पूजते हैं बैल – गोरु, और गाय रोटी पहली खाती
मेरे देश की धरती।
भयभीत होकर जहाँ से लौटा सिकंदर, ऐसी बिहारी छाती
मेरे देश की धरती।
जहाँ नानक-कबीर के दोहों को, दादी-नानी हैं गाती
मेरे देश की धरती।
जहाँ पग-पग पे प्रेम मिले, पल-पल में मिले थाती
मेरे देश की धरती।
सौ पुश्तों तक लड़े शिशोदिया, रंगने को बस माटी
मेरे देश की धरती।
जहाँ धूल में भी फूल खिले, पत्थर नारी बन जाती
मेरे देश की धरती।
सर्वश्व दान करके, बन गए भोलेनाथ त्रिलोकी
मेरे देश की धरती।
पिता के मान पे श्रीराम ने कर दी गद्दी खाली
मेरे देश की धरती।
भगीरथ के एक पुकार पे, स्वर्ग से गंगा उतरी
मेरे देश की धरती।

मिट गए हूण टकरा के स्कंदगुप्त से, किनारो पे लहरे मिटती
मेरे देश की धरती।
जहाँ हर दिल में गणपति, और नित्य होती उनकी आरती
मेरे देश की धरती।
इस मिटटी की यही बात है यारों, यहाँ मिट जाती हर दूरी
मेरे देश की धरती।
काँधे पे जहाँ हल शोभित और हाथों पे चमकती राखी
मेरे देश की धरती।
खेत-खलिहान, बँसवारी से पनघट, नैनों से नैन लड़ाती
मेरे देश की धरती।
पतली-कमर, बाली-उम्र, डगर-डगर, चढ़ती जवानी, इठलाती
मेरे देश की धरती।
कितना लिखूं,लिखता रहूं, खुशबू फिर भी नहीं मिटती?
मेरे देश की धरती।

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दुनिया से हम लड़के


मिलती रहो हमसे यूँ ही बहाने करके
तुम्हे अपना बनाएंगे दुनिया से हम लड़के।
पिलाती रहो हमको बस यूँ ही अधरों से
तुम्हे अपना बनाएंगे दुनिया से हम लड़के।
जब संग ही हमारे हो, मुख पे ये भय कैसा?
तुम्हे उठा के ले जाएंगे हम तुम्हारे ही घर से.
यूँ ही नाम नहीं मेरा, जमाने में यहाँ
तुम भी बोल के देखना “पृथ्वीराज” एक बार आँगन में.

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भांग अपनी ये मीठी


आँखे मेरी, तुम्हारे दरस की प्यासी
प्यास मिटा दो हे अविनाशी।
सबको यहाँ, मिल गया कुछ -ना – कुछ
कब होगी प्रभु, हमपे कृपा तुम्हारी।
क्षमाप्राथी है ह्रदय मेरा, भुला कर पाप मेरे
अब तो चखा दो भांग अपनी ये मीठी।
कब तक रखोगे यूँ दूर-दूर अंक से अपने?
चरणों में तुम्हारे पिता, सिमटी है दुनिया ये सारी।
सबकुछ भुलाकर बस इतना ही चाहा
जन्म-जन्म तक धोता रहूं चरण तुम्हारी।
आँखे मेरी, तुम्हारे दरस की प्यासी
प्यास मिटा दो हे अविनाशी।

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माधव की


प्रेम की पहली बांसुरी
मैंने सुनी है अपने माधव की.
फिर कैसे बन जाऊं माँ?
मैं किसी और के आँगन की.
दो ही नयन हैं और एक ही ह्रदय
सभी में विराजे हैं बस माधव ही.
फिर कैसे बन जाऊं मेरी माँ?
मैं किसी और के आँगन की.
घूँघट रहे या फिर ना रहे
मैं तो हो ही चुकी हूँ उनकी।
फिर कैसे बन जाऊं मेरी माँ?
मैं किसी और के आँगन की.
होगा वही जो माधव रचे
बाकी मैं तो हूँ अब एक कठपुतली।
फिर कैसे बन जाऊं मेरी माँ?
मैं किसी और के आँगन की.
पी कर विष मैं पाउंगी उनका प्यार
फिर इंकार क्यों और कैसी उदासी।
फिर कैसे बन जाऊं मेरी माँ?
मैं किसी और के आँगन की.

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स्वप्न


अकेला जीवन
अकेली राहें
पिता-विहीन
अकेला रह गया.
पिता के संग
परम संतोष
विश्वास, मीठी नींदे
लम्बी राते
अब बस एक स्वप्न
रह गया.

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भरम


सरेआम दिल को ठुकरा कर वो जा रहे हैं मुस्कराकर
ना रहीं अब ख्वाइशें, ना रहा कोई ही भरम.


लिख भी दूँ तो क्या लिखूं, ये कलम -दवात बता?
लिखने से भला कब मिटा हैं किसी के दिल का दरद?


थाम रहीं हैं मेरे सामने ही वो किसी की बाहों को
जाने कैसे ज़िंदा हूँ, ना हट ही रही उनसे नजर.

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