Lily from a valley
Taught me a dance
How to make a move
While a girl is in arms.
With every good move
She gave a kiss as a reward.
At the beach near Santa Monica
She told,
“you can do whatever you want.”
Rifle Singh Dhurandhar
Lily from a valley
Taught me a dance
How to make a move
While a girl is in arms.
With every good move
She gave a kiss as a reward.
At the beach near Santa Monica
She told,
“you can do whatever you want.”
Rifle Singh Dhurandhar
The girl was going easy
making me crazy.
That night was in Mumbai
we were on the road.
Within a second
she gave a kiss like a storm.
Before that moment
I was devastated and a hopeless man.
She gave the sweetest
shortest-shocking moment
which I desired again.
The long 15 years are like a dry river.
The memory of that night
brings a monsoon with cold breeze and rain.
Rifle Singh Dhurandhar
इश्क़ दो तरह की होती
ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन
शीतकालीन:
नरम-नरम घास पे
ओस की बूंदें
उसपे अपने पाँव
सिरहन सी होती
मीठी लगती ताप.
ग्रीष्मकालीन:
छिटक-छिटक के
लालिमा उषा की
क्षितिज से बुलाती नाम
कलरव करते पक्षी
मीठी पेड़ों की छाँव।
काँधे पे हल लिए
खेत जाता किसान
दोपहर में नहा -खा
चारपाई पे लेता आराम।
शीतकालीन:
सुबह – शाम जलती अलाव
चूल्हे की अंगीठी
रात के पड़ाव पे
विरहा की तान
और गृहणियों के गान.
परमीत सिंह धुरंधर
मौजों ने साहिल तक आते-आते अपना रंग बदला है
सज-धज के निकली थीं, अब सादगी का चोला है.
संग सांखियाँ थीं, जवानी थी, अल्हड सब, मस्तानी थीं
आते-आते यहाँ तक सबको बिछुड़ना है.
ऊँची हसरते लेकर निकले थे जो लम्बी उड़ान पे
ऐसे मंजे उस्तादों को भी अंत में हाँ थकना है.
Rifle Singh Dhurandhar
किसी नजर की तलाश ही हैं जिंदगी का भटकाव
ढल जाती है जिंदगी फिर बिना किसी पड़ाव।
रुत तो कई आयी पर रहा मुसाफिर का वो ही हाल
नीचे छाले, ऊपर धुप, ना छावं ना कोई आराम।
राहें तंग, कंकर -पत्थर सी, मंजिल भी रंगहीन-उदास
धैर्य, प्रार्थना, प्रयास से ही संभव उत्कर्ष -उत्थान।
Rifle Singh Dhurandhar
अभी तुम हसीन हो, अभी नाजुक बड़ी हो
अभी मिलेंगे तुमको गली-गली में मजनू।
अभी तुम नई हो, कातिल छरहरी हो
अभी तुम्हारे लिए चमकेंगे सारे जुगनू।
जिधर तुम डाल दो अपनी ये दिलकस नजर
उधर ही बैठे हैं तुमपे लुटाने को सभी आबरू।
Rifle Singh Dhurandhar
प्रेम होता है जिस्म से और दिल रोता है
नजर के खेल में बस ये ही पेंच होता है.
रोकने से रुक जाए ये मुमकिन नहीं
बेवफाओ का बस ये ही अंदाज होता है.
Rifle Singh Dhurandhar
दर्द में मैं नहीं तू भी है साकी
ये जो इल्म होता तो तुझे बेवफा ना कहते।
होते हैं रंगबाज सभी छपरइया
ये जो इल्म होता तो हमसे ना टकराते।
जूनून आज भी है मुझे बुढ़ापे में
ये जो इल्म होता तो वो घूँघट ना उठाते।
शौक कई पाल रखे हैं दिल में
ये जो इल्म होता तो वो ना मुस्कुराते।
Rifle Singh Dhurandhar
मदिरा मेरे कंठ से उतर कर कर गयी दिल पे जोर
छोटी सी इस जिंदगी में कितनी कच्ची है प्रेम की डोर?
शाम को जो पुलकित-पुष्प थी, काँटे हो गयी होते भोर
छोटी सी इस जिंदगी में कितनी कच्ची है प्रेम की डोर?
Rifle Singh Dhurandhar
ये मस्तियाँ जो रह गयीं ख़्वाबों के नीचे
ये जो इल्म होता तो हम बगीचे में सो लेते।
इश्क का नशा, हैं बस दर्द से भरा
ये जो इल्म होता तो हम यूँ कैद ना होते।
जुल्फ की छावं भी हैं काँटों से भरी
ये जो इल्म होता तो हम आगोस में ना आते.
सारे जहाँ के हुस्न का एक ही रंग है बेवफाई
मीर-ग़ालिब को ये जो इल्म होता तो हम ना कहते।
Rifle Singh Dhurandhar