तमन्ना


इन काली-काली आँखों में,
मैं काजल बनके बस जाऊँ।
कुछ प्यार-मोहब्बत की बातें,
कुछ चंदा-तारें ले आऊँ.
कभी बादल बनके बिचरूँ,
इन उड़ती-उड़ती तेरी जुल्फों में.
फिर कभी छम-छम करके बरसूँ,
तेरे उन्नत-उन्नत बक्षों पे.
तेरी गोरी-गोरी काया पे,
चन्दन सा मैं घिस जाऊँ।
कुछ प्यार-मोहब्बत की बातें,
कुछ हल्दी-उबटन लगाऊँ।

परमीत सिंह धुरंधर

एक प्रयास हो


अधूरी तमन्नाएँ, शिकार करती हैं,
जिस्म पे नहीं, मन पे प्रहार करती हैं,
इनसे भी जो बच जाओ,
तो फिर, हताश करती हैं.
तो उठों, दोस्तों,
एक प्रयास हो.
ये मालुम है की हार निश्चित हैं मेरी,
मगर कहीं तो अपना विकास हो.
कब तक बहायेंगे ये आंसूं गरीब बनके,
अपनी ही बस्ती में अमीरों की जागीर बनके।
तो उठों, दोस्तों,
एक प्रयास हो.
अपने भी जीवन का,
कोई तो एक श्रृंगार हो,
ये मालुम है की हार निश्चित हैं मेरी,
मगर कहीं तो अपना विकास हो.

परमीत सिंह धुरंधर

रोग


बिषय ही ऐसा था,
विवाद हो गया,
सारे शहर में खुले – आम,
बवाल हो गया.
दुकानें हो गयी बंद,
और,
लोग घरों में छुप गए,
गली-गली में ऐसे,
कोहराम मच गया.
छा गए थे जो बादल,
बरसने को उमड़-उमड़ के,
वो भी छट गए,
और,
सूरज फिर से प्रखर हो गया.
देखो, कैसे अब,
आसमां का रंग बदल गया.
अमीर के घरों पे आ गए हैं तारे,
और गरीब,
जला-जला कर दिया,
हर रात गरीब हो रहा.
भूख से बिलखती एक भीड़ देखी,
जिसे, एक नेता,
आज अमीर बनने का सपना दे गया.
भैंसो पे बैठे, हँसते बच्चे,
आज उनको कोई हाथों में मोबाइल दे गया.
की शहर से फैला ये रोग,
आज गावँ-गावँ में आ गया.

परमीत सिंह धुरंधर

The girl with the newspaper


The girl with the newspaper,
took my heart forever.
In the moving train,
first time,
I felt the heart-pain.
That night, I dreamed a lot,
because, she was so hot.
With black eyes,
and long hair,
took my heart forever.
The girl with the newspaper,
took my heart forever.

Parmit Singh Dhurandhar

प्रेम और प्रेमा


प्रेम: मुझ इस बात का अफ़सोस नहीं की तुम मुझसे प्यार नहीं करती। बल्कि इस बात की ख़ुशी है की तुम बिना प्यार के भी मेरे साथ रहती हो.
प्रेमा: मैं इसलिए तुम्हारे साथ नहीं रहती की तुम्हे ख़ुशी मिले, न ही मैं इसलिए तुम्हे छोड़ के नहीं जा रही की तुम्हे दुःख होगा। मैं इसलिए तुम्हारे साथ हूँ क्यों की मैं जिंदगी को समझती हूँ.

परमीत सिंह धुरंधर

किस्मते-दर्जी


दिल कब का टूट कर, समुन्दर में बह गया,
वो अब तक दरिया में प्यार ढूंढती हैं.
इश्क़ का मेरा चूल्हा, जल कर कब का बुझ गया,
और वो अब तक सिलवट पे सरसो पिसती हैं.
निगाहों में उनके हैं कितने ही परदे,
कोई हाय, शर्म, लज्जा तो कोई मोहब्बत कहता हैं,
जब भी देखता हूँ इन पर्दों के अंदर,
बस सोना, चांदी और पैसों का चमक दीखता हैं.
कौन कहता है की मोहब्बत दिलवालो का खेल हैं,
आज भी उनका दुपट्टा कहीं और,
तो कमीज, कहीं और ही सिलता है.

परमीत सिंह धुरंधर

Kashmiri politician are the most honest politician in India: as per Arvind Kejriwaal


Recently, I read an article where Arvind Kejriwaal asked many questions from the BJP state president, Delhi, for his involvement in some company. My only point is why he raised such things against politician who are fighting against him at present time. At the time of Lok-Sabha election, he jumped against Modi in Gujrat, same thing he is doing here. All the other time he is just silent or he does not care. He never tells anything against Mulayam Singh, Sharad Pawar and even Om Prakash Chautala. He told nothing against Jayalalitha and Krunanidhi. Now he is silent against Congress since BJP is the main challenger.

It is beyond my capacity to understand. In my view, he is the most dangerous person because if somebody is against him does not mean that the guy is most corrupt.

Does AK feel that people from Bollywood are more honest? He never tells how much illegal money they have or about their connection with underworld.

Why did he not suggest the people of Kashmir about any corrupt politician in just finished election? I think the politicians from Kashmir are most honest one as per AK.

Parmit Singh Dhurandhar

ब्रह्मचर्य और नारी


अगर ब्रह्मचर्य से ही परमानन्द की प्राप्ति होती, तो खच्चर यूँ धरती पे बोझ न ढोता। और, अगर एक नारी एक नारी का दर्द समझ सकती तो टाइगर वुड्स को दुबारा प्यार नहीं प्राप्त होता।

परमीत सिंह धुरंधर

आज़ादी


दिल में एक जोश हैं,
और धड़कनो में एक उमंग।
आजा, तुझे दे दूँ,
ए आसमां, एक नया रंग।
तोड़ दूँ तेरी बेड़ियां,
या फिर तोड़ दूँ ये सारे बंधन।
परतंत्र इस धरती पे अब कोई,
अगर फूल खिले,
तो हो उसका स्वतंत्र जीवन।

परमीत सिंह धुरंधर