तुमसे दूरी,
दो हाथों की ही सही,
अब बर्दास्त नहीं,
जिंगदी कैसी भी हो,
बिन तुम्हारे अब इसकी चाह नहीं।
परमीत सिंह धुरंधर
The hotcrassa ia about me, my poems, my views, my thinking and my dreams.
तुमसे दूरी,
दो हाथों की ही सही,
अब बर्दास्त नहीं,
जिंगदी कैसी भी हो,
बिन तुम्हारे अब इसकी चाह नहीं।
परमीत सिंह धुरंधर
16 साल की गुड़ी, नीले सलवार में,
ले गयी दिल मेरा हाय, डाल अँखियों को आँख में,
मैं पूछता ही रहा पता, वो गयी हंस के टाल रे.
पतली कमर पे दो जोबन को उछाल के,
ले गयी दिल मेरा हाय, डाल अँखियों को आँख में,
मैं पूछता ही रहा पता, वो गयी हंस के टाल रे.
नाजुक बदन पे नखरे हजार के,
अँखियों से निकले बस तीखे ही बाण रे,
ले गयी दिल मेरा हाय, डाल अँखियों को आँख में,
मैं पूछता ही रहा पता, वो गयी हंस के टाल रे.
काँटों से कटीली पूरी रास की खान रे,
ले गयी दिल मेरा हाय, डाल अँखियों को आँख में,
मैं पूछता ही रहा पता, वो गयी हंस के टाल रे.
परमीत सिंह धुरंधर
ना गुरु गोबिंद जी होते,
तो ना झेलम में पानी होता,
ना ये धरती होती,
जिसपे गाँधी का नाम होता।
ऐसी सरहदें घींच गए,
वो अपनी तलवारों के बल पे,
की कोई भी,
अहिंसा में बल दिखा गया.
जिसने चुनवा दिया,
अपने दो – दो पुत्रों को दीवारों में,
उससे भी बड़ी त्याग की परिभाषा क्या?
ऐसी सरहदें घींच गए,
वो अपनी तलवारों के बल पे,
की कोई भी,
कपड़ों का त्याग कर महान बन गया.
परमीत सिंह धुरंधर
The whole life goes like la-la la-la lu
Don’t worry and don’t try glue.
You cannot change anything except your path
But don’t keep changing it every night
By hoping something out of the blue.
Parmit Singh Dhurandhar
There is always a way for everyone as no one can stop anyone growth.
Parmit Singh Dhurandhar
नवम्बर का महीना था,
दिसंबर का इंतज़ार था,
वो बोलीं,
जनवरी में मेरी हो जायेंगीं।
एक चिठ्ठी पहुँची,
फरवरी में घर मेरे,
की 14 को,
वो किसी और की हो जायेंगीं।
परमीत सिंह धुरंधर
किताबे खुली रखो,
दिल को बाँध के रखो,
वो अभी – अभी जवान हुई हैं,
उनसे बस रातों का रिस्ता रखो.
वो जितना चाहें,
गीत गाती रहें वफ़ा के.
तुम उनसे अभी,
ना इसकी उम्मीदें रखो.
परमीत सिंह धुरंधर