दरियावों को किनारों की चाहत नहीं होती
समंदर तक आते-आते वो आग नहीं होती।
तू घमंड में जिसे पाकर, इतहास हैं उसका,
वो किसी की नहीं होती।
हम बिहारी हैं, नाप लेके हैं आँखों से आकार का
हम सी दें चोली तो वो छोटी नहीं होती।
तू जिसे चाहे चुन ले, तेरा अधिकार है
सबका ससुराल बिहार हो ऐसी किस्मत नहीं होती।
कितना तोड़ोगे हमको नजरों को चुराकर हमसे
हम तो पहले ही टूटे हैं दिल को लगा कर तुमसे।
इश्क़ में तुम्हारी गली का नजराना बहुत है
और इश्क़ में हमारी गली में मयखाना बहुत है.
तुम्हे मिलता है सबकुछ बिना पुकारे
हमारी पुकारों में बस तेरा नाम बहुत है.
कातिल की नजर को सलाम करके
हम बैठ गए है इश्क़ में नाकाम होके।
दर्द भी बता दें तो क्या भला
वो दवा पिलाती भी हैं तो भाईजान कहके।