वो दवा पिलाती भी हैं तो भाईजान कहके


दरियावों को किनारों की चाहत नहीं होती
समंदर तक आते-आते वो आग नहीं होती।
तू घमंड में जिसे पाकर, इतहास हैं उसका,
वो किसी की नहीं होती।
हम बिहारी हैं, नाप लेके हैं आँखों से आकार का
हम सी दें चोली तो वो छोटी नहीं होती।
तू जिसे चाहे चुन ले, तेरा अधिकार है
सबका ससुराल बिहार हो ऐसी किस्मत नहीं होती।

कितना तोड़ोगे हमको नजरों को चुराकर हमसे
हम तो पहले ही टूटे हैं दिल को लगा कर तुमसे।

इश्क़ में तुम्हारी गली का नजराना बहुत है
और इश्क़ में हमारी गली में मयखाना बहुत है.
तुम्हे मिलता है सबकुछ बिना पुकारे
हमारी पुकारों में बस तेरा नाम बहुत है.

कातिल की नजर को सलाम करके
हम बैठ गए है इश्क़ में नाकाम होके।
दर्द भी बता दें तो क्या भला
वो दवा पिलाती भी हैं तो भाईजान कहके।

तरंगिणी हो


ह्रदय की तुम स्वामिनी, मेरे मन में विराजी हो
चंचल नयनों से वेधती, हर पल मेरी साँसों की वेदी हो.
सरिता सी नित बह रही, कुरेदती हो पाषाण को
टूट-टूट, बिखर रहा मैं नित, तुम प्रबल-प्रखर-प्रचंड, तरंगिणी हो.
तुम्हारे मतवाले नयनों की चाल, जैसे अरण्य में स्वछंद विहरति मृगनी हो.

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तेरे अंगों पे कहीं पटना,कहीं छपरा तो कहीं सीवान दीखता है


तू मुस्कराये तो पुरे के पुरे मानचित्रा पे
पूरा -का – पूरा बिहार दीखता है.
तुम्हारे मम्मी -डैडी पूजनीय ही नहीं
सिर्फ मेरे लिए भगवान् ही नहीं
तुम्हारे मम्मी -डैडी, दादा-दादी, भाई-बहन
उनमे पूरा -का-पूरा ससुराल दीखता है.
तू शर्माए तो वो सर्दी की रात
वो बोरसी की आग
और उसमे पकता वो लिट्टी दीखता है.
तेरे नयन जैसे मेरे गावँ के पोखर
तेरी कमर, जैसे चलनी में चोकर
तेरी कमर पे झूलती ये चोटी
पीपल पे वो मेरा झूला दीखता है.
तू पूरी -की-पूरी मुझे मिल जाए
तो मुझसे धनवान कौन, बता?
की तेरे अंगों पे कहीं पटना,
कहीं छपरा तो कहीं सीवान दीखता है.

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यार की आँखों में इतनी आदाएं हैं


तन्हा-तन्हा कर देंगे इशारों में, यार की आँखों में इतनी आदाएं हैं
हम कैसे संभाले खुद को इन राहों में, यार की आँखों में इतनी आदाएं हैं.
अरे बिजली गिरा दे यूँ ही हंस के बातों में, यार की आँखों में इतनी आदाएं हैं
तन्हा-तन्हा कर देंगे इशारों में, यार की आँखों में इतनी आदाएं हैं.

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काला काजल


काला काजल तेरी आँखों में उतर कर किसी का ख्वाब बन गया
जो भी मिला, मिलकर तुझसे, तेरा गुलाम बन गया.
तेरे पावों को चूमकर इतराते हैं धूल-कण
तेरी गालों पे बरस कर, बादल झूम रहा.
तेरी बलखाती कमर पे सारा जहाँ थम गया.
कौन जी रहा है जिंदगी, एक नाम तो बता
तूने जिससे भी मुख फेरा, वो ख़ाक बन गया.
तू खोले अपनी खिड़की या किवाड़ तो करने को दीदार
तेरे दर पे आके सारा जमाना बैठ गया.

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करीब


वो मिली और बैठी इतने करीब में
तन्हाई लिख गयी ताउम्र मेरे नसीब में.
दरिया कब हुई है किसी किनारे की?
मगर डूबते हैं वो इसी यकीं में.

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हक़


अब बारिशों का मौसम वैसा न रहा
रूह, रूह न रही, दिल, दिल न रहा.
सुखाता नहीं हूँ जिस्म को अब भींगने के बाद
दुप्पटे पे उनके मेरा हक़, अब वो हक़ न रहा.

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दुप्पट्टा


तुम लिए जा रही जवानी, यूँ दुप्पट्टा डाल के.
हम कैसे जियेंगे रानी, बिना तुम्हे देखें?
अंग-अंग से गदराई हो, जैसे सावन की बदली,
हम कैसे जियेंगे रानी, बिना इनमे भींगें?

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