धोबन ताहर जोबन -3


छपरा के बाबूसाहेब लेके पिचकारी
निकलल बारन रंगे के धोबन तहार जवानी।
चाहे छुप ल, या कतनो तेल मल ल
अंग – अंग पे ताहार आज दिहन निशानी।
छपरा के बाबूसाहेब लेके पिचकारी
निकलल बारन रंगे के धोबन तहार जवानी।

साल भर से चल अ तारु मटक-मटक के
हर अ तारु दिल सबके नयना के चटक से
तहरा नस – नस में आज भाँग घोलाई।
छपरा के बाबूसाहेब लेके पिचकारी
निकलल बारन रंगे के धोबन तहार जवानी।

चाहे कूद ल, चाहे फाँद ल
चुनर -चोली आज ताहार दुनो रंगाई।
छपरा के बाबूसाहेब लेके पिचकारी
निकलल बारन रंगे के धोबन तहार जवानी।

कमरिया पे अपना हिला व् तारुन छपरा
सुगवा फाँस अ तारु लहरा के जोबना
बीच छपरा में आज तहार जोबना रंगाई।
छपरा के बाबूसाहेब लेके पिचकारी
निकलल बारन रंगे के धोबन तहार जवानी।

Rifle Singh Dhurandhar

होली


होली में आप रहती और मैं रंगता
जवानी का नशा बिना भाँग के ही चढ़ता।
भींगती तेरी चोली मेरे रंग से
और जोबन पे तेरे मेरा रंग चढ़ता।

Rifle Singh Dhurandhar

बाबू साहेब छपरा के, लेके पिचकारी


बाबू साहेब छपरा के, लेके पिचकारी
रंग अ तारन चुनर आ चोली पारा-पारी।
दउरा तारी आँगन से देख अ हाँ दुआरी
रह गइल कोठी के खुलल हाँ किवाड़ी।
बाबू साहेब लेके हाँ छपरा के पिचकारी
रंग अ तारन चुनर आ चोली पारा-पारी।

अरे भागल बारी खेता – खेती, जाके हाँ गाछी
बच्चा पूछ अ तारन सन कहाँ गइली माई?
बाबू साहेब छपरा के, लेके पिचकारी
रंग अ तारन चुनर आ चोली पारा-पारी।

बाबू साहेब छपरा के, लेके पिचकारी
रंग अ तारन साली आ सरहज पारा -पारी।
इ कहस जीजा जी, अब त रहे दी
उ कहस, पाहुन ऐसे ना भीतर डाली।
बाबू साहेब लेके हाँ छपरा के पिचकारी
रंग अ तारन चुनर आ चोली पारा-पारी।

बाबू साहेब छपरा के, लेके पिचकारी
रंग अ तारन मोटकी आ पतरकी पारा-पारी।
बाबू साहेब छपरा के, लेके पिचकारी
रंग अ तारन साया आ साड़ी पारा-पारी।
बाबू साहेब छपरा के, लेके पिचकारी
रंग अ तारन नयकी आ पुरनकी पारा-पारी।

Rifle Singh Dhurandhar


वो सैया जी रउरा से देहिया लगा के
ना रहनी घर के, ना रहनी घाट के.
माई-भौजाई रखतारी २४ घंटे अब आँख
अंगना-दुवारा होता बस हमरे बात
की अबकी होली के बाद, हो जाइ पीला हमर हाथ.
वो सैया जी रउरा से अंगिया लगा के
ना रहनी घर के, ना रहनी घाट के.

परमीत सिंह धुरंधर 

जोगीरा सारा रारा -2


ई रहली ई -घाट, ऊ रहली उ -घाट
दुनो के छेद दिहनि एके तीर में, अइसन हम तीरंदाज।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।

खाजा खिलाइनि, खजुली खिलाइनि, खिलाइनि सारा मिष्ठान,
जब तक कटहल ना खइली, ना भइली ु शांत।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।

सालभर भौजी रहेली बीमार
आइल फागुन, चोली कास के होगइली तैयार।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।

आरा के लोग, बलिया के लोग, अरे छपरा के लोग
देख ताहार जवानी, सबके लागल बा इश्क़ के रोग.
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।

माई-बाप दुनू रखत नइखे लोग बेटा के नाम
की पंडित जी बतईले बारन नाम, अरविन्द केजरीवाल।
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।

परमीत सिंह धुरंधर 

जोगीरा सारा रारा


दिल्ली में जीत गयी फिर से आप
कलयुग में एक मात्रा सहारा, हनुमान जी का नाम.
जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा।

परमीत सिंह धुरंधर 

जोगीरा सारा रारा


सैयां काट -काट के खाये गाल रे
जैसे मालपुआ ह इ बंगाल के.
जोगीरा सारा रारा -जोगीरा सारा रारा।

ऐसे तो दांत न थे किसी यार के
सखी, एहीसे मीठा लागे भतार रे.
जोगीरा सारा रारा -जोगीरा सारा रारा।

कभी भाई- कभी बेटा, कभी बीबी – कभी पतोह
बुढ़ापे में मुलायम की सब लगते हैं क्लास रे.
जोगीरा सारा रारा -जोगीरा सारा रारा।

दिल्ली में ताल थोक के मनोज तिवारी है तैयार
अबकी बार, दिल्ली में बिहार -२.
जोगीरा सारा रारा -जोगीरा सारा रारा।

कमलनाथ के हाथ में जैकलीन की कमर
युवा राहुल बाबा पे कोई ना डाले नजर.
जोगीरा सारा रारा -जोगीरा सारा रारा।

बॉलीवुड में है एक मैना, बोले खरी – खरी बात
नाम है कंगना, हारे जिससे रितिक, कारन – सैफ अली खान.
जोगीरा सारा रारा -जोगीरा सारा रारा।

परमीत सिंह धुरंधर 

फगुआ के मज़ा लूटह


जीयह हो Crassa भाई जीयह,
फगुआ के मज़ा लूटाह।
सब कोई पीये ताड़ी लोटा से,
तू चोलिये से ताड़ी पीयह।

जीयह हो Crassa भाई जीयह,
फगुआ के मज़ा लूटाह।
सब कोई पीये ओठवा से,
तू अंग-अंग से पीयह।

जीयह हो Crassa भाई जीयह,
फगुआ के मज़ा लूटाह।
सब कोई तोड़े पलंग,
तू देवाल के ही ढाहह।

 

परमीत सिंह धुरंधर

इश्क़ में ईद


इश्क़ में ईद हम भी मना ले,
कभी कोई चाँद तो निकले।
होली में रंग तो सभी,
खेल लेते है चेहरा छुपाके।
इश्क़ में दिवाली हम भी मना ले,
कोई एक दिया तो जलाये आँगन में.

 

परमीत सिंह धुरंधर

कभी – कभी मेरे ह्रदय में बेदना उठती है


कभी – कभी मेरे ह्रदय में बेदना उठती है,
मैं सीमा का प्रहरी और तू आँगन की एक कलि है.
मैं अपने स्वार्थ वस बंधा हूँ तुझसे,
तू निस्वार्थ मन से मेरे संग कष्ट उठाती है.
कभी – कभी मेरे ह्रदय में बेदना उठती है.
तुमने काटी हस कर बरसों एक ही साड़ी में,
और लाने को नयी पोशाकें मेरे लिए,
होली में, मेरी हाथों को पैसे थमाती है.
मैं नहीं दे पाया तुम्हे कभी भो कोई खुशियाँ,
मगर तू जिन्दी के इस साँझ पे भी,
मेरी हर खुसी पे मुस्काती है.
कभी – कभी मेरे ह्रदय में बेदना उठती है,

परमीत सिंह धुरंधर