माटी से सिंहों को गढ़ा


गुरु से बढ़कर कोई हुआ है क्या?
उसमे गुरु गोविन्द सिंह जी
जिनके नाम में ही पुण्य जुड़ा।

जब धरती हुई पतित और पुण्य, शुन्य बना
तब चाक पे माटी से सिंहों को जिसने गढ़ा.

और सौ – सौ बाजों से टकराने चोंच
एक – एक चिड़िया उड़ी
गुरु ने ऐसा कर्म का पाठ पढ़ाया.

परमीत सिंह धुरंधर

गुरु गोबिंद जी और अहिंसा


ना गुरु गोबिंद जी होते,
तो ना झेलम में पानी होता,
ना ये धरती होती,
जिसपे गाँधी का नाम होता।
ऐसी सरहदें घींच गए,
वो अपनी तलवारों के बल पे,
की कोई भी,
अहिंसा में बल दिखा गया.

जिसने चुनवा दिया,
अपने दो – दो पुत्रों को दीवारों में,
उससे भी बड़ी त्याग की परिभाषा क्या?
ऐसी सरहदें घींच गए,
वो अपनी तलवारों के बल पे,
की कोई भी,
कपड़ों का त्याग कर महान बन गया.

 

परमीत सिंह धुरंधर

त्याग की महत्ता


त्याग जीवन में सबसे महत्वपूर्ण और महान काम है.  चाहे कलयुग हो या सतयुग हो, वीर वही है जिसने त्याग किया है. और गुरु गोबिंद सिंह जी से बड़ा त्यागी कोई नहीं। भगवान् राम एक अवतार त्रेता में और गुरु गोबिंद सिंह जी कलयुग में अवतार सिर्फ मानवता  को त्याग की महत्ता बताने के लिए हुआ था.

 

परमीत सिंह धुरंधर