तलाक


रिश्ते सुधर लो,
कब तक यूँ उनसे उलझते रहोगे?
क्या, इरादा है?
कब तक यूँ इन गलियों में भटकते रहोगे?
दिन तो कट ही जायेगी,
कहीं किसी के दूकान पे,
चाय का सवाद ले कर.
किसी घने वृक्ष के नीचे,
तन डाल कर.
सोचों, रातों का क्या करोगे?
कब तक यूँ अंधेरों में,
दिया जलाओगे?

(I would prefer to live with you,

to a life with a new.

With all pain and happiness,

would prefer to be with you.)

परमीत सिंह धुरंधर