जिन्दगी में सुख का और अँधेरे में हुस्न का जवाब नहीं.
परमीत सिंह धुरंधर
जिन्दगी में सुख का और अँधेरे में हुस्न का जवाब नहीं.
परमीत सिंह धुरंधर
११ साल हो गए बिछड़े। हर गुजरते साल के साथ, आँसूं तो काम होते जा रहे हैं, दर्द और यादों का बोझ बढ़ता जा रहा है. मगर पता नहीं पितृपक्ष में ना यादें आती हैं, ना दर्द होता है, न ही बोझ का एहसास। हवाओं में कोई है जो मुझे सहारा दे रहा है या मेरी साँसे बनके दिल के दर्द पे मलहम लगा रहा है, बिना बताये। तिलों में कुछ है, जो विज्ञान नहीं समझ सकता।
परमीत सिंह धुरंधर
क से कबूतर मंडराने लगे हैं,
छज्जे पे अपने।
दाना चुगा के आ जाऊं क्या,
बोल मेरी अम्मा?
गुटर – गू उनकी प्यारी मुझको,
तुझको भी मिल जाएगा बैठे – बैठे दामाद।
तू कहे तो जाल बिझा के आ जाऊं,
बोल मेरी अम्मा।
ह से हट्टे – कट्टे हैं, कहीं उड़ ना जाएँ,
देख कोई नया मोहल्ला।
तू कहे तो आँख लड़ा के,
फाँस लूँ उनको, मेरी अम्मा।
परमीत सिंह धुरंधर
कैसे सहोगी पतली कमर पे रानी,
इतना भार बरसात में.
मेरी बाहों का सहारा ले लो,
नहीं तो खत्री ले जाएगा मझधार में.
मैं तो हूँ दिल का बड़ा भोला – भाला,
धीरे-धीरे करूँगा तुम्हे प्यार।
खत्री तो हैं शातिर – शैतान,
चूस लेगा सारा रस, एक ही बार में.
कैसे संभालोगी अकेले रानी,
ये खनकती जवानी इस संसार में.
मेरे साथ घर बसा लो,
नहीं तो खत्री लूट लेगा ये श्रृंगार रे.
मैं तो हूँ दिल से बड़ा सीधा -सच्चा,
उठाऊंगा नखरे तुम्हारे जीवन भर.
खत्री तो है खिलाड़ी – रंगबाज,
अंग – अंग निचोड़ लेगा, एक ही बार में.
परमीत सिंह धुरंधर
इश्क़ करना जरुरी है जिन्दा रहने के लिए,
जिन्दा रहना जरूरी है हुस्ने -बेवफाई समझने के लिए.
परमीत सिंह धुरंधर
जवानी थी,
तो किसी बेवफा,
के पीछे बरबाद कर दी.
अब तन्हाई और बुढापे में,
बाप और उनकी सीखें,
याद आती हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
जिंदगी का मज़ा,
जड़ों से जुड़े रहने में हैं.
आसमा की ऊचाइयाँ,
तो फरेब है.
जहाँ सूनेपन के अलावा,
कुछ भी नहीं है.
इश्क़ का मजा,
दिया बुझा कर नहीं।
सरेआम, खेतो खलिहानों में,
आँखों को लड़ाने में है.
परमीत सिंह धुरंधर
जिंदगी का वो दौर था,
मैंने भी सीना तान दिया।
हारे हम कुछ इस कदर,
की दर्द आज तक नहीं मिटा।
फिर भी, सर झुक नहीं कभी,
किसी दुश्मन की दहलीज पर.
उनको बस इतनी ही ख़ुशी मिली,
की मेरे महबूब ने,
उनको अपना शौहर मान लिया।
परमीत सिंह धुरंधर
लूट लेंगे रानी, तेरी जावानी के भार को,
कब तक संभालोगी, इस कच्ची कमान को.
हम भी हैं गावँ के, मिटटी में खेले हैं,
चित कर देंगे तुम्हे, बस लग जाने दो एक दाव तो.
लूट लेंगे रानी, तेरी जावानी के भार को,
कब तक संभालोगी, इस कच्ची कमान को.
सबकी नजर है, सबको खबर हैं,
खत्री भी घायल है, देख तेरे अंग – अंग को.
लूट लेंगे रानी, तेरी जावानी के भार को,
कब तक संभालोगी, इस कच्ची कमान को.
परमीत सिंह धुरंधर
माँ, मुझको पति रूप में,
बस वो एक खत्री चाहिए।
माँ, पिता को भी अब ये,
बात पता चलनी चाहिए।
मत पूछ की उसमे ऐसा है क्या?
रोबीला, छबीला, गठीला है वो हाँ.
शातिर है, चालक है, चालबाज है वो,
मुझे ऐसा ही मर्द खतरनाक चाहिए।
माँ, पिता को भी अब ये,
बात पता चलनी चाहिए।
आँखों से जो मदहोस कर दे,
बाहों में लेके जो खामोश कर दे.
तारे, चाँद, ना ये सितारे चाहिए,
बस खत्री के आँगन में एक खाट चाहिए।
माँ, पिता को भी अब ये,
बात पता चलनी चाहिए।
परमीत सिंह धुरंधर