मुझे दर्द का,
पता भी नहीं,
और आँखे मेरी,
छलकने लगी.
बड़ी बेवफा,
मेरी महबूबा,
मइयत पे ही मेरी,
वो निगाहें लड़ाने लगी.
शिकवा करें,
तो किस से करें,
जिसे अपना कहा था,
वो गैरों की बाहों में,
अब सिमटने लगी, परमित.
Month: June 2013
कतराना II
न गम कर,
मेरी बेवफाई का.
न शौक कर,
मेरी अंगराई का.
मैं कल भी,
सिक्कों की खनक,
पे सजती थी.
मैं आज भी,
सिक्को पे ही,
तौलती हूँ.
न बेकरार कर,
मुझसे दूर जाकर,
न एतबार कर,
बाहों में आकर.
मैं कल भी,
मोहब्बत में छलती थी,
मैं आज भी,
प्यार में ठगती हूँ, परमित.
कतराना
तेरी जुल्फें कभी मेरे चेहरे पे भी छाती थीं,
तेरी जुल्फें आज भी लहराती हैं.
बस फर्क इतना ही है हुस्न,
की तू कल तक जिसकी बाहों में थी,
आज उसी से कतराती है.
तू कल भी लाल रंग से सजती थी,
तुझे आज भी लाल रंग में भाती है.
बस फर्क इतना ही है हुस्न,
की तू कल तक जिसकी साडी पहनती थी,
आज उसी से कतराती है, परमित
काली रातों की यादें
ए चाँद तुझसे क्या कहें,
कैसी कटीं हैं रातें,
मैं उमरती थी नदी की तरह,
वो बाँध गयें किनारें-2.
फूलों के ख़्वाबों का,
भी नहीं हैं ये मंजर,
पलकों-से-पावों तक,
वो दे गयें हैं यादें-2.
बिन सवान के बरसातें,
बिन साज बजी मल्हार,
मैं जितना ही इतराती,
वो साध गयें निशाने-2.
कब भोर हुई पलकों में,
कब सांझ ढली आके,
मैं कुछ जान न पाई,
वो इस कदर पीने लगे प्याले-2.
पायल भी जली इर्ष्या के अगन में,
चूड़ी दूर हुई साजन की राहों से,
मैं फँसी इस कदर भंवर में, परमित
वो ले गये बहा के शर्म की मेरी दीवारें-2.
चरित्र
ना पूछ मुझसे,
कितना पतन हुआ है,
इस देश में चरित्र का.
जहां सीता बनी ही शर्लिन ,
और सनी रूप है सावित्री का, परमित.
जवानी
हम अगर कर्ज न उतारे,
तो फिर हमारी शोहरत ही क्या.
हम अगर दीप न जलाएँ,
तो फिर हमारी नियत ही क्या.
उठती लहरें गिरती हैं,
किसी न किसी किनारें से,
हम अगर लहरों को न रोकें.
तो फिर हमारी सरहद ही क्या.
खिलता हुआ यौवन लेकर,
वो तोडती हैं बस शीशा.
हम अगर बंजर को हरियाली न दें,
तो फिर हमारी जवानी ही क्या, परमित.