एक जोधा के प्रेम के,
हज़ार किस्से कहने वालों.
कभी अजबदेह के त्याग की,
एक कहानी तो गढ़ के देखो.
क्षत्राणी थी, अभिमानी थी,
अपने पति की प्राण-प्यारी थी.
जोधा ने जिसका त्याग किया,
चंद सोने – चाँदी की चाहत में.
अजबदेह ने शान राखी,
पुरखों के उस निशानी की.
परमीत सिंह धुरंधर