समर में समर ने,
दिखाया ऐसा होसला.
समर ही नहीं बचा कोई,
अब समर के लिए.
एक हम ही हैं,
उलझे हुए हैं अब भी समर में.
जाने कितने समर बचे हैं और,
मेरे इस जिन्दगी के समर में.
परमीत सिंह धुरंधर
समर में समर ने,
दिखाया ऐसा होसला.
समर ही नहीं बचा कोई,
अब समर के लिए.
एक हम ही हैं,
उलझे हुए हैं अब भी समर में.
जाने कितने समर बचे हैं और,
मेरे इस जिन्दगी के समर में.
परमीत सिंह धुरंधर
शैतान माही की चंचल शैतानियाँ,
सीधे से मनु की कीमती नादानियाँ,
उसपे से बाबूसाहब की कभी न खत्म,
होने वाली लम्बी कहानियाँ।
हसीं पल वो लौट के नहीं आ रहे,
पर छोड़ गए हैं धड़कनो पे गहरी निशानियाँ।
चावल, दाल, सब्जी, और उसपे चलती थी,
भाभी के हाथों से मीठी मछलियाँ।
वो स्वाद, वो एहसास, वो मिठास,
अब कहाँ सजने वाली हैं,
रसोई में मेरे ये खनकती थालियाँ।
परमीत सिंह धुरंधर
अब अकेले खाने का मज़ा आएगा,
हर कौड़ किसी की याद लाएगा।
ये कोई बदन का दर्द नहीं,
की योग करके मिटा दूँ.
ये तो मन का प्रेम है,
अब आत्मा के साथ ही जाएगा।
परमीत सिंह धुरंधर
हुस्न ने आज हमें आँखों से नहीं, ओठों से नहीं, शब्दों से पिलाया है,
जब उसने धुरंधर सिंह को “मनीष मल्होत्रा” कह कर बुलाया है.
मिलता नहीं है कोई इस बाजरे-किस्मत में मंजिल तक साथ देने को,
मगर राहे-सफर में किसी ने आज हमें क्या जामे-मोहब्बत पिलाया है.
इधर गया, उधर गया
यहाँ रहा, वहां रहा
इस दिल को,
चैन कभी मिला नहीं।
कोई तसल्ली,
इस दिल को दे,
ऐसा भी,
कोई मिला नहीं।
हार से,
यह टूटा नहीं
न जीत से,
अहंकारी हुआ
कुछ देर, थमा जरूर
पर धड़कना,
इसने छोड़ा नहीं।
आज भी, धड़कता है,
कल भी, धड़केगा,
उन सुनहरे दिनों की तलाश में,
जहाँ इस की दिलरुबा होगी,
इस का चैन होगा,
प्रेम की बौछार होगी,
चैन इस की साँस होगी।
किसी ने मेरी पंक्तियों को आज सराहा,
तो ये लगा , जिन्दगी सही राहों पे तो है.
कांटे ही सही, चुभते हुए मेरे पांवों में,
ये मेरे खून के बहते कतरे, किसी की निगाहों में तो हैं, परमित…..Crassa
जीवन के इस नए ,
खुबसूरत मोड़ पे ,
उम्मिद्दों के इस
नए बरसात में ,
इस नयी सुबह की,
नयी रौशनी में ,
जब आपके कदम
आगे बढे , तो
कोई आपके साथ होगा,
पीछे मुड़ने की,
जरुरत नहीं,
बस एक एहसास होगा,
कठिनाइयों को देख कर अब,
दोस्तों की याद नहीं,
बस Crasaa उनका ख्ययाल होगा….