माधव की


प्रेम की पहली बांसुरी
मैंने सुनी है अपने माधव की.
फिर कैसे बन जाऊं माँ?
मैं किसी और के आँगन की.
दो ही नयन हैं और एक ही ह्रदय
सभी में विराजे हैं बस माधव ही.
फिर कैसे बन जाऊं मेरी माँ?
मैं किसी और के आँगन की.
घूँघट रहे या फिर ना रहे
मैं तो हो ही चुकी हूँ उनकी।
फिर कैसे बन जाऊं मेरी माँ?
मैं किसी और के आँगन की.
होगा वही जो माधव रचे
बाकी मैं तो हूँ अब एक कठपुतली।
फिर कैसे बन जाऊं मेरी माँ?
मैं किसी और के आँगन की.
पी कर विष मैं पाउंगी उनका प्यार
फिर इंकार क्यों और कैसी उदासी।
फिर कैसे बन जाऊं मेरी माँ?
मैं किसी और के आँगन की.

RSD

भज गोविन्दम


भज गोविन्दम, भज गोविन्दम,
भज गोविन्दम रे.
मन की पीड़ा, तन का कष्ट
सब प्रभु हजार लेंगे।

भज गोविन्दम, भज गोविन्दम,
भज गोविन्दम रे.
ना कोई माया है, ना कोई है छल
निमल मन से पुकार लो
प्रभु दौड़े आएंगे।
भज गोविन्दम, भज गोविन्दम,
भज गोविन्दम रे.

चार पहर के मल्ल युद्ध में
जब ग्राह ने छल किया।
भक्त की पीड़ा पे श्रीहरि दौड़े
ना क्षण भर का विश्राम किया।
बस नयनों में नीर को भर लो
प्रभु दौड़े आएंगे।
भज गोविन्दम, भज गोविन्दम,
भज गोविन्दम रे.

मैं तो सुनती तुम्हारी मुरली हूँ


दीप जलाती हूँ, गोविन्द।
पुष्प चढाती हूँ, गोविन्द।
कुछ नहीं मांगती हूँ,
बस दिल लगाती हूँ गोविन्द.
जग समझे तुम्हे मूरत माटी की,
मैं तो सुनती तुम्हारी मुरली हूँ-२.

गीत गाती हूँ गोविन्द,
गुनगुनाती हूँ, गोविन्द
थिरकती हूँ, नाचती हूँ गोविन्द।
जग समझे मीरा, मति हारी
मैं तो सुनती तुम्हारी मुरली हूँ-२.

कैसे रोकूं खुद को तुमसे?
कहाँ कोई दुरी रह गई हम में?
जग समझे मीरा हो गई बावरी
मैं तो सुनती तुम्हारी मुरली हूँ -२.

मेरे मन-ह्रदय से गोविन्द


कब तक छुपोगे इन आँखों से?
कब तक छुप-छुप के रहोगे?
कैसे छुपोगे मेरे मन-ह्रदय से गोविन्द?
कैसे छुपोगे मेरी साँसों से गोविन्द?

Rifle Singh Dhurandhar

ए मोहन।


कुछ भी नहीं धरा पे मनभावन
कुछ भी नहीं मोहक
तुम्हारे बिना ए मोहन।
फिर किस तरफ मैं जाऊं
छोड़ तुम्हारे चरण, ए मोहन।

Rifle Singh Dhurandhar

तुम कहीं पत्थर ना हो जाओ


कब तक दिल को बाँधोगे
कहीं सुख न जाए अश्क इन आखों से.
मैं तो प्यासी रह जाउंगी,
तुम कहीं पत्थर ना हो जाओ माटी से.
और क्या माँगा हैं एक दर्शन के सिवा?
कब तक ठुकराओगे, कहीं कंठ ना रुंध जाए.
मैं तो प्यासी रह जाउंगी
तुम कहीं पत्थर ना हो जाओ माटी से.

Rifle SIngh DHurandhar

बताओ गोविन्द।


कौन से मन से पुकारूँ तुम्हे?
बताओ गोविन्द।
जिसमे पीड़ा है, या जिसे तुमसे बाँधा है.
कौन से नयना से निहारूं तुम्हे?
बताओ गोविन्द।
जिसमे अश्क हैं या जिन्हें तुमसे लड़ाया है.
कैसे खुद को सजाऊँ?
बताओ गोविन्द।
चुनर-चूड़ी, जेवर से, या जो पुष्प तुमपे चढ़ाया है.
किस रंग को चढ़ा दूँ चुनर पे अपने?
बताओ गोविन्द।
जो ज़माने ने दिया मुझे, या जो तुमने मुझे लगाया है.

Riffle Singh Dhurandhar