जली राहें,
जो काली राखों से ढकीं हैं.
हरे पत्तों और पुष्पों से बंचित,
पक्षियों के कलरव से रहित हैं.
ना ये प्रतिक हैं,
अन्धकार का,
ना किस्मत का,
ना हार का.
ये तो चिन्ह हैं,
उस संघर्ष का.
जहाँ, झुलस गए,
पर झुके नहीं।
मिट गए पर मुड़े नहीं।
मौत तक डटे रहे,
मगर पथ से हटे नहीं।
ये उत्साह है,
उत्सव है,
प्रेरणा है,
हम जैसे नवजवानों का.
जिनके लिए जिंदगी सिर्फ सफलता नहीं,
प्रयास हैं,
एक और असफलता का.
आदि है,
एक और सफर के अन्त का.
चाह है,
एक और विरह का,
अलगाव का.
जहाँ जिंदगी पैसो की चमक,
कंगन की खनक नहीं।
जुल्फों की छावं और ओठों का जाम नहीं।
जहाँ जिंदगी मरूस्थल की प्यास,
कीचड़ सी उदास,
हो कर फिर भी,
एक बुझते दिए का,
जलते रहने का,
एक आखरी प्रयास है.
परमीत सिंह धुरंधर
Like this:
Like Loading...