चिठ्ठी मेरी


कातिल बड़ी है नजर ये तेरी
प्यासे हैं सब देख जवानी तेरी।
कभी किताबों में कुछ तो हाँ लिख दे
अगर पढ़ नहीं सकती चिठ्ठी मेरी।

 

परमीत सिंह धुरंधर

समंदर और दरिया


है समंदर खामोश अभी की
तन्हाई बहुत है
उम्मीदों पे भारी शहनाई बहुत है.
ये सच है,
जमाने की प्यास मिटाती है दरिया
पर दरिया के यौवन पे
समंदर का बलिदान भारी बहुत है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

दू ए गो नथुनिया


दू ए गो नथुनिया में लूट अ तारअ राजा
रात में चैन आ दिन में मजा.

कइला बदनाम, भइल सारा जिला में हल्ला
बाली उमर में ही दे दिहलअ साजा।

छुप के – छुपा के आवतानी तहरा से मिले
ओपर तू रखअतार किवाड़ खुला।

 

परमीत सिंह धुरंधर

खुदा कहाँ है?


सब चाहते हैं जानना की खुदा कहाँ है?
जन्नत कहाँ है?
माँ जिधर कदम रख दे
उससे हसीन भला और क्या है?

 

परमीत सिंह धुरंधर

किवाड़ खुला राजा जी


अभी बाली बा उमर राजा जी
काहे दे तानी हमके अइसन सजा राजा जी.
रोजे आवेनी छुप के – छुपा के सबसे
आ रउरा रखsतानी किवाड़ खुला राजा जी.
हमरा पे मत ऐसे जुल्म बढ़ाई राजा जी
ना त हम हो जाएम बदनाम बड़ा राजा जी.

 

परमीत सिंह धुरंधर

हम धुरंधर बन गए


जब इश्क़ तन्हा हुआ तो समंदर बन गए
जब इश्क़ बेवफा से हुआ तो कलंदर बन गए.
यूँ ही नहीं कहता जमाना की बड़ा शातिर हूँ मैं
दर्द को पी कर हम धुरंधर बन गए.

 

परमीत सिंह धुरंधर

इंद्रा की सभा में नृत्यांगना


तन्हाइयों में उर्वसी बनकर
अपने तीक्ष्ण नैनों से ह्रदय में
तरंगे उठाने वाली
विरह की तपिश में मुझे झोंककर
संसार के सम्मुख
मेनका बनकर मुझसे मुख मोड़ लेती है.
जो कल तक प्रेम, धर्म, कर्तव्य, नारी – सम्मान
का बोध कराती, ज्ञान देती
वो स्वर्ग के सुख के लिए
मातृत्व, स्त्रीत्व और गृहस्थ धर्म को त्याग कर
इंद्रा की सभा में नृत्यांगना बनने का
प्रस्ताव स्वीकार कर लेती है.

 

परमीत सिंह धुरंधर

दुल्हन


हारे ऐसे की जमाने ने मज़ाक बना दिया
फिर जीते भी ऐसे की जमाना मज़ाक बन गया.

मगर इस हार – जीत में दोस्तों
हाथों से कुछ फिसल गया.

यह सही है की वक्त भर देता है जख्मों को
मगर वक्त ने ही जाने क्यों जख्मों को हरा छोड़ दिया?

हमने ख्वाब सजाएं जिन हाथों को थामकर
उन्ही हाथों ने, उन ख़्वाबों को हमसे चुरा लिया।

इश्क़ जब भी बेपनाह हुआ है
जमाने से पहले हुस्न ने उसे ठोकर लगा दिया।

चंद मुलाकातों का शौक मोहब्बत नहीं
क्या समझेंगे वो जिन्होंने हर रात नया सेज सजा लिया?

तड़प क्या होती है दिल की उस जिस्म से पूछो?
जिसकी मोहब्बत को किसी और ने अपनी दुल्हन बना लिया।

वो चढ़ गयी डोली बिना एक पल भी सोचे
जाने हुस्न ने कैसे खुद को इतना कठोर बना लिया?

 

परमीत सिंह धुरंधर