Treat me like a morning


Treat me as a sky,
Where you want to reach
To have your life.
Treat me as a sky
Where you want to spread your wings
To fly and not just to survive.

Don’t treat me as a delicate flower
Or weather.
Don’t treat me like a night.
Just because you need a nap.
Treat me like a morning.
With this, your day can begin.

RSD

बालाम परदेशी हो गए


देहिया गुलाबी करके
नयना शराबी करके
बालाम परदेशी हो गए.

मनवा के गाँठ खोल के
चिठ्ठी – आ – पाती पढ़ के
बालाम परदेशी हो गए.

अंग – अंग पे निशानी दे के
चूल्हा-चुहानी दे के
बालाम परदेशी हो गए.

मुझको बेशर्म करके
लाली और मेहँदी हर के
बालाम परदेशी हो गए.

मुझसे छुड़ा के मायका
मुझको दिला के चूड़ियाँ
बालाम परदेशी हो गए.

करवट मैं फेरूं रात भर
सुनकर देवरानी की चुहल
बालाम परदेशी हो गए.

Rifle Singh Dhurandhar

सैंया जी के खेत में


सैंया जी के खेत में
लगे हैं दाने अनार के, सखी
सैंया जी के खेत में
सैंया जी के खेत में.

चार बच्चों की अब्बा बना दी
फिर भी लगाते हैं रेस रे.
सैंया जी के खेत में
सैंया जी के खेत में.

६० की मैं, पर प्यास मिटती नहीं
ऐसे रखते हैं मुझे सुलगाए के.
सैंया जी के खेत में
सैंया जी के खेत में.

हैं तो काले कौवे से वो
पर चमकती हैं उनकी देह रे.
सैंया जी के खेत में
सैंया जी के खेत में.

यूँ ही नहीं हैं वो छपरा के धुरंधर
पछाड़ा है सबको इस रेत पे.
सैंया जी के खेत में
सैंया जी के खेत में.

मेरी तो किस्मत फूटी, जो इनसे बंध गयी
क्या -क्या ना करतब दिखाते हैं सेज पे?
सैंया जी के खेत में
सैंया जी के खेत में.

परमीत सिंह धुरंधर 

प्रेम


प्रेम जितना मधुर होगा
प्रेम उतना ही सहज होगा.

प्रेम जितना सहज होगा
प्रेम उतना ही निकट होगा।

प्रेम जितना ही निकट होगा
ह्रदय उतना ही जवाँ होगा।

हृदय जितना ही जवाँ होगा
रूप उतना ही पुलकित होगा।

रूप जितना ही पुलकित होगा
सहचर्य उतना ही मधुर होगा।

परमीत सिंह धुरंधर 

सौतन के सेज पे


जोबन चढ़ल, नयना मिलल
चुनर उड़ल, चूड़ी टूटल
राजा जी तहरे ही खेत में.
ललुआ भइल, भलुआ भइल
भइल सारा खेला
राजा जी रउरे ही खेत में.
छोड़ के फिर आपन खेत
बइठल बानी कौना, सौतन के सेज पे.

परमीत सिंह धुरंधर

तार-तार करेला


सैया न, बड़ा खेल खेलेला
कभी धुप, कभी छावं करेला।
एगो त चोली बाटे देह पे
ओकरो के तार-तार करेला।

परमीत सिंह धुरंधर

एक बिंदी बन के


प्रेम कितना विवश कर देता है
दो नयनों से ह्रदय को हर के.
वो तो रख लेती हैं उपवास
हम रह जाते हैं बस एक चाँद बन के.

वो चलती हैं सज के – संवर के
बाँध के साड़ी अपनी कमर से.
हम रह जाते हैं बस
उनके माथे की एक बिंदी बन के.

परमीत सिंह धुरंधर

छपरा की बैठकी


मुझे छोड़ गए बलमा
एक प्यास जगाकर।
सुलगती रही सारी रात
मैं एक आस लगाकर।

काजल भी न बहा
न टुटा ही गजरा।
उड़ गया वो भौंरा
अपनी जात बताकर।

कोई संदेसा पीठा दो
उस हरजाई Crassa को.
न ऐसे छले
हाय, दिल लगाकर।

जाने क्या मिलता है
छपरा की बैठकी में.
की भूल गए तुम हमें
अपनी लुगाई बनाकर।

परमीत सिंह धुरंधर

दबा देना तुम पाँव माँ का


आवो,
तुमको प्यार करूँ
जीवन की इन बाधाओं में.
पहला पग मैं रखूंगा
काँटा आये जो राहों में.

तुम मुझको मोहन कहना
कहूंगा राधा तुमको मैं.
पहला पग मैं रखूंगा
काँटा आये जो राहों में.

थोड़ा दबा देना तुम
पाँव माँ का रातों में.
ख्याल रखूंगा जीवन भर
मैं बढ़कर अपनी साँसों से.

आवो,
तुमको प्यार करूँ
जीवन की इन बाधाओं में.
पहला पग मैं रखूंगा
काँटा आये जो राहों में.

परमीत सिंह धुरंधर