माँ और मिष्टान


बार-बार,
हर बार,
जन्म मिले मुझे,
तो तेरी गोद,
में मेरी माँ.
बार-बार,
हर बार,
खाने को मिले,
परमित को तेरी हाँथो,
पुआ-पूरी, मिष्टान.

जीवन


तेरे अंगो से इतना लगे हैं,
तन्हाई में मुस्करा रहें हैन.
तू काट ले जिसके संग भी जीवन,
अपने नसीब पे हम भी इतर रहें हैं परमित.

सचिन तेंदुलकर और मेरी जवानी


पलट-पलट के दे रहा था आस्ट्रलिया के गेंद्वाजों को,
और मैं जी रहा था सजते हुए अपने अरमानों को.
ज्यों-ज्यों उदय  हुआ क्रिकेट के आसमान पे भगवान् का,
मेरी जवानी ने ओढ़ा रंग राजपूती अहंकार का, परमित.

हवा


अनजान हैं कितने ही इस गुलिश्ता में,
चाँद तो सबका ही है दोस्तों ,
जिस दिन जावानी ढल जायेगी,
उतर आयेंगे किसी के आँगन में, दोस्तों.
ढलकता हैं आँचल रह-रह कर,
हवा ही कुछ इस कदर चल रही है,
जिस दिन तन भी ढलने लगेगा,
आँचल भी संभल लेंगे, परमित.

काजल


वो छोड़ गयी जिस मोहब्बत को दोस्ती के नाम पे,
आज उसी को अपनी गलती बता रही है,
दोष तो हमेशा काजल का ही है, दोस्तों,
जिसे कल तक आँखों में बसाती थीं,
आज उसी को कालिख कह रहीं है, परमित.

सौतन- सखियाँ


जिस पल से मिले हो तुम सैंया,
सजने लगी हूँ, मैं छुप-छुप के.
पराया लगे है, अब बाबुल,
रहने लगी हूँ, मैं घूँघट में.
एक तेरी नजर की आशा में,
जलता है तन-मन मेरा,
एक नजर जो तू देख ले,
खिल जाता है अंग-अंग मेरा.
जिस पल से मिले हो तुम सैंया,
खुश रहने लगी हूँ, मैं बंद दरवाजों में.
सौतन लगती है, अब सखियाँ,
राज दबाने लगी हूँ, मैं सीने में, परमित.

तो क्या करेगा दर्पण


सोच-सोच कर,
छू लेता है,
अम्बर,
मेरा मन.
जब हम होंगे,
तुम होगे,
तो, कैसा
होगा उप्वन.
आज भी,
सजती,
होगी तुम,
देख कर आइना.
जब हम होंगे,
और तुम होगे,
तो, क्या
करेगा दर्पण, परमित।