लक्ष्मण


मैं अपने बाजूंओं से,
विधवंश मचा दूंगा।
क्या रावण,
क्या मेघनाद,
व्रह्माण्ड मिटा दूंगा।
काल की हुई,
कैसे ये हिम्मत,
की लक्ष्मण के प्राण हरे,
आज सारी सृष्टि में धुरंधर सिंह,
मैं प्रलय ला दूंगा।

लक्ष्मण


बिना तुम्हारे राम कुछ नहीं,
बिना तुम्हारे सीता की चाह नहीं,
बिना तुम्हारे अवध ही क्या,
अब ये ब्रह्माण्ड भी मेरा नहीं।
मैं नैनों को भींच लूंगा,
सीता को भी छोड़ दूंगा,
जीवन को सीचने वाला मैं,
अब सबका जीवन सोंख लूंगा।
बिना तुम्हारे सम्बन्ध नहीं,
बिना तुम्हारे कोई शौर्य नहीं,
बिना तुम्हारे राम नहीं,
और धुरंधर सिंह मेरा कोई धर्म नहीं।