Covid lockdown


We are hiding in a room
Like having a bore and forced honeymoon
However, take a positive note
We are giving time to color our background.

Nature is smiling with a clear blue sky
Rivers are flowing like fresh warm honey
The Sun, Moon, trees, and flowers
Now enjoying their shares proportionally.

As a human
We should be open to learn
Learn to sacrifice
Learn to give up
For the betterment of our society.

We are not hiding due to fear
This is the time for meditation
Meditation to improve our love
Meditation to improve our bond with our surroundings.

Wrote on #lockdown due to corona.

Parmit Singh Dhurandhar

हाँ, मैं ही बलात्कारी हूँ.


मैं पापी
मैं दुराचारी हूँ
हाँ, मैं ही बलात्कारी हूँ.
वो जो पैदल चल रहें हैं
धुप में, छावं की तलाश में
दिल्ली छोड़कर
पहुँचने को अपने गावं में
उनके ख़्वाबों को जलाकर
मिटाने वाला
मैं ही वो ब्रह्मपिचास, अत्याचारी हूँ.
हाँ, मैं ही वो बलात्कारी हूँ.

जिन्होंने सत्ता की कुर्सी पे
मुझे बैठाया
मेरे सपनो को मंजिल तक पहुँचाया
उनके मिटटी के घरोंदों को
उनके बच्चों के अरमानों को
रौंदने वाला, सितमगर, अनाचारी हूँ.
हाँ, मैं ही वो बलात्कारी हूँ.

परमीत सिंह धुरंधर 

मासिक -माहवारी


हम ही खगचर, हम ही नभचर
हमसे ही धरती और गगन
हम है भारत की संतान, मगर
भारत को ही नहीं है खबर हमारी।
पल -पल में प्रलय को रोका है, और
पल- पल ही है प्रलय सा हमपे भारी।

बाँध – बाँध के तन को अपने
काट – काट के पत्थर – पाषाण को
सौंदर्य दिया है जिस रूप को
उसके ही आँगन से निकाले गए,
जैसे मासिक -माहवारी।
पल -पल में प्रलय को रोका है, और
पल- पल ही है प्रलय सा हमपे भारी।

समझा जिनको बंधू – सखा
उन्होंने ना सिर्फ मुख मोड़ा
हथिया गए धीरे – धीरे, मेरी किस्मत,
तिजोरी, और रोटी।
पल -पल में प्रलय को रोका है, और
पल- पल ही है प्रलय सा हमपे भारी।

सत्ता भी मौन खड़ी है, भीष्म – द्रोण, कर्ण सा
निर्वस्त्र करने को हमारी पत्नी, बहू और बेटी
रह गया है बाकी
अब केवल कुरुक्षेत्र की तैयारी।
पल -पल में प्रलय को रोका है, और
पल- पल ही है प्रलय सा हमपे भारी।

परमीत सिंह धुरंधर