पथ को प्रशस्त्र कर
समस्त को अस्त कर
धीर बन, वीर बन.
मानव तू साधारण सा
ठान ले तो दानव सा
अंत ना हो जिसका
उस दम्भ का बिस्तार कर.
पथ को प्रशस्त्र कर
समस्त को अस्त कर
धीर बन, वीर बन.
माया – मोह निकट नहीं
मन – मष्तिक विकट नहीं
काल के कपाल पर
तू अपना नाम गढ़.
पथ को प्रशस्त्र कर
समस्त को अस्त कर
धीर बन, वीर बन.
निर्मल पवन सा
निर्भीक गगन सा
पावन गंगा सा
हर दिशा में प्रवाह कर.
पथ को प्रशस्त्र कर
समस्त को अस्त कर
धीर बन, वीर बन.
काँटों और फूल से
कृपाण और शूल से
तन का सम्बन्ध जोड़
मन को ना अधीर कर.
पथ को प्रशस्त्र कर
समस्त को अस्त कर
धीर बन, वीर बन.
पत्नी ना पुरस्कार
अपमान ना तिरस्कार
खोने को अपना सब कुछ
हर क्षण खुद को तत्पर कर.
पथ को प्रशस्त्र कर
समस्त को अस्त कर
धीर बन, वीर बन.
परमीत सिंह धुरंधर