स्वर्गलोक में सभी देवतावों के बीच देवराज इंद्रा का खामोश और झुका चेहरा देवगुरु बृह्श्पति कि चिंता का कारण है. तीन दिनों से नाचती उर्वशी थककर बेहोश हो चुकी है, मगर इंद्रा कि नजरों ने जाम के एक बूंद को भी ओठों से नहीं लगाया।
नारद मुनि का आगमन, देवतावों का उनको कौतहूलता के साथ देखना। नारद: प्रणाम देवगुरु।
देवगुरु: स्वागत है नारद।
नारद: क्या हुआ है देवगुरु, देवराज इस कदर किस सुंदरी के रस का पान कर रहे है.
देवगुरु: नारद, वो देवराज ही क्या जो सुंदरियों का स्वामी न हो. मगर चिंता ही ये है कि अब देवराज का सुंदरियों से मोहभंग हो गया है. उर्वशी, रम्भा और तो और अब वे देवी रति कि बाहों में भी अशांत रहते हैं. पिछले चार दिनों से तो वो किसी के पास गये भी नहीं।
नारद: इसमें इतनी चिंता का क्या विषय है, जब लालशा जागेगी तो चले जायेंगे।
देवगुरु: नारद, मनुष्यों कि तरह मत बात करो जो हर चीज़ ये सोच के रखते है कि कल उसका पान करेंगे। अंततः, उन सब चीज़ो का पान कोई और करता है. सब छोड़ दो, तो भी इन अप्सराओं का क्या करें। अब तो धरती पे कोई योग पुरुष या मुनि भी नहीं जो इनको भोग करें। धरती पे अब कोई बलवान रावण भी नहीं, जिनसे इनका अपहरण का स्वांग रचे. सामान्य मानुष अगर इनका भोग करेगा तो फिर इनका मोल ही क्या रहेगा।
नारद: मन में सोचते है कि देवगुरु पागला गये हैं मैंने कब कहा कि इन्हे धरती पे भेज दो.
देवगुरु: क्या सोच रहे हो नारद। अरे नारद, जब रात गहराती है और ये अप्सराएं कई-कई दिनों तक जब सज संवर के रातो को प्रेम रस का पान करने में असमर्थ रहती है,तो मेरे समर्थ आके मेरे ही चरित्र कि परीक्षा ले ने लगती है. लगता है नारद, इस कलियुग में आके कहीं मेरा गुरुपद न छीन जाएँ।
नारद: तो क्या बाकी देवों का इनके कौमार्य से मोह भंग हो गया है?
देवगुरु: तुम भी नारद, ये क्या बातें कर रहे हो. अरे, स्त्री ही वो आनंद है, जिसे अँधा बिना देखे ही देखता है और लूला बिना छुए भी उसके स्पर्श का सही और सच्चा पान कर सकता है.
नारद: देवगुरु, सीधे -सीधे कहिये।
देवगुरु: नारद। सत्ता और शासक के लिए ही स्त्री का उद्भव हुआ है, और स्त्री भी शासक द्वारा शासित हो कर ही सुख को धारण करती है. कोई भी अप्सरा ज्यादा दिनों तक इंद्रा कि बाहों से दूर नहीं रह सकती। अरे इन लोगो ने अन्य देवों को अपने शयनकक्ष में आने से मना कर दिया है.
नारद: तो क्या इंद्रा ने अपने प्रिये मेनका का भी त्याग कर दिया है?
देवगुरु: नहीं नारद। लेकिन ये ही तो चिंता का विषय है. मेनका यहाँ सवर्गलोक में नहीं है. वो धरती पे विचरण करने गयी है.
नारद: तो बुला लिजिये…, हँसते हुए…..
देवगुरु: ये इतना आसान होता तो हम कर चुके होते। वो आज कल एक पुरुष के जीवन को जी रही है. और उसको यहाँ तब तक नहीं ला सकते जब तक विधि का विधान न हो.
नारद: पुरुष के जीवन को ! ये क्यों और कौन है वो पुरुष?
देवगुरु: ये सब श्राप के चलते हो रहा है, मेनका शापित हो के सब भूल चुकी है और इस जीवन में धरती पे श्री अरविन्द केजरीवाल का जीवन जी रही है.
ये सुनकर नारद गायब हो जातें है, वो धरती पे मेनका रूपी अरविन्द केजरीवाल के दर्शन को चले जाते हैं. उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला कि कब मेनका शापित हो कर केजरीवाल के रूप में धरती पे अपनी लीला करने चली गयी.