तेरी आँखों का रंग,
यूँ बदलता है,
मेरा सितम ही मुझपे,
अब भारी पड़ता है.
गुनाहों का बोझ कब तक,
उठायें.
अब तो ईमान का बोझ,
भी गुनाह लगता है.
परमीत सिंह धुरंधर
तेरी आँखों का रंग,
यूँ बदलता है,
मेरा सितम ही मुझपे,
अब भारी पड़ता है.
गुनाहों का बोझ कब तक,
उठायें.
अब तो ईमान का बोझ,
भी गुनाह लगता है.
परमीत सिंह धुरंधर
A long twelve-year,
But, still I remember,
Your curly hair.
Your nose,
Your smile,
And,
Eyes full of tears.
A long twelve-year,
But, still I remember,
Your pain,
Your passion,
And,
Your fear.
A long twelve-year,
But still I remember,
Your touch,
Your breath,
And,
Your desire.
A long twelve-year,
But, still I remember,
A knife in your finger.
Cake,
And,
The birthday in November.
But, unable to understand,
How you forgot everything,
In a night, dear .
Parmit Singh Dhurandhar
इसी धरा पे हम भी जिए हैं,
इश्क़ का मजा लिए.
हर मोड़ पे वो खड़ी थी,
और हम थे गुलाब लिए.
उनके अब्बूज़ान की,
निगाहें बड़ी सख्त थी.
और मेरी निगाहों से,
हो जाती वो मस्त थीं.
आज तक याद है,
किनते पाँव चलती थीं,
वो घर से इबादतगाह तक.
और कितने पाँव,
स्कूल से घर तक.
परमीत सिंह धुरंधर
हंसुआ ई चलता हमरा जिगर पे,
ऐसे मत मुस्का, आज बारु अकेले,
चउरा के खेत में.
मन करअता की आज रोक ली रात में,
खेत औगरल जाइ दूनी मिलके साथ में.
परमीत सिंह धुरंधर
मत पूछो मालिक,
ईद कैसी रही.
उनके ओठों पे थी सेवइयां,
मेरे सीने में आग जलती रही.
परमीत सिंह धुरंधर
हमने प्रेम में,
इतने तिरस्कार झेलें हैं.
आंसू भी निकलने से,
अब इंकार करते हैं.
चाँद कभी भी,
पलट के अमावस कर दे.
सैकड़ो सितारे भी,
इसके आगे विवस दीखते हैं.
जमाने का क्या है?
यहाँ तो सभी, दूसरों के चूल्हे,
की आग पे सेंकते हैं.
हम इस कदर,
दिल को जला चुके हैं,
हर शहर में, हुस्नवालों से पहले,
हम मयखाना ढूंढते हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
दिल जो उमंगें लेने लगे.
तो समझो की जवानी है.
दिल जो बैठ जाए.
तो समझो कोई कहानी है.
दिल जो,
गुजरने लगे मयखाने से,
तो समझो,
कोई आँचल बदलने लगा है.
दिल जो,
सवरने लगे गुसलखाने में,
तो समझो,
कोई सपनो में आने लगा है.
परमीत सिंह धुरंधर
आइए,
जिंदगी है,
तो गम उठाइए।
देव नहीं तुम,
जो रस का भोग हो।
ना दानव हो तुम,
जो दुष्ट तुम बनो।
मानव हो,
मृत्यु से तुम बंधे।
तो साँसों में,
स्वाभिमान का दीप,
जलाइए।
आइए,
जिंदगी है,
तो गम उठाइए।
इस धरा पे,
हर दुःख,
तुम्हारे लिए।
इन राहों की,
हर पीड़ा,
सिर्फ तुम्हारे लिए।
मगर,
जवानी है तुमको मिली,
तो हिमालय से,
टकराइए।
आइए,
जिंदगी है,
तो गम उठाइए।
परमीत सिंह धुरंधर
उनकी जवानी का नशा है,
रातों की मस्ती,
और अंगों के चुभन से.
मेरी जवानी का मज़ा है,
जंगे – जमीन पे,
लहू बहाने में.
परमीत सिंह धुरंधर
शहंशाहों के तख़्त बदल गए,
पर अंदाज नहीं बदले।
तुम्हारी जवानी ढल गयी होगी,
मगर हमारे इरादे नहीं बदले।
भीड़ से फौज नहीं बनती,
हमने आज तक,
म्यान में तलवार नहीं बदले।
सुनता हूँ रोज की,
तुम्हारी जुल्फें सफ़ेद हो गयी हैं।
मगर हमने आज तक,
वो तस्वीर नहीं बदले।
कभी मिलना,
तो देख लेना खुद ही,
घांस की रोटी खाकर,
जमीन पर सो कर भी.
इस राजपूत ने, आज तक,
आज भी वो चाहत नहीं बदले।
परमीत सिंह धुरंधर