मस्तानी


This poem is about Mastani (http://en.wikipedia.org/wiki/Mastani), who was the wife of Peshwa Baji Rao I (http://en.wikipedia.org/wiki/Baji_Rao_I).

मस्तानी की आँखे,
ह्रदय से बोलतीं थीं,
बाजीराव की बाहों में,
जब वो अमृत घोलती थीं.
मुख पे चन्द्र की आभा,
वक्षों पे सागर लिए थी.
नयन-कटार में,
छत्रशाल सी निपुण,
अपने योवन में,
सिंधु सी बलवती थी.
खिलने लगे पुष्प उधान में,
कोयल चहकने लगी थी.
रण में मिले जख्मों को,
वो चाँद बनके हरने लगी थी.
पुलकित मस्तानी जब,
खिलने लगी कवल सा,
बाजीराव के पौरष को,
एक नया अभिमान मिला.
जिस शमशीर ने गढ़ा,
भारत का नया मानचित्र,
उसकी चमक का सौभाग्य खिला.

परमीत सिंह धुरंधर