गुलाबो


ए गुलाबो, वो गुलाबो,
सुन गुलाबो तू जरा,
मेरी छमिया, मुझको छोड़ चली,
अब घर सम्भाल तू मेरा।
छोटे- छोटे मेरे बच्चे,
देख तुझी को अम्मा बोलें।
इनके मुख को ही देख के,
अब चूल्हा जला तू मेरा।
ए गुलाबो, वो गुलाबो,
सुन गुलाबो तू जरा,
मेरी छमिया, मुझको छोड़ चली,
अब घर सम्भाल तू मेरा।
बोलेगी तो नथुनी दिला दूँ,
ना तो बोलेगी तो हँसुली।
जो आये मन में, वो करना,
करूँगा ना, टोका – टोकी,
बस साँझ -सबेरे आके कर दे,
चूल्हा -चौकी तू मेरा।
मेरी छमिया, मुझको छोड़ चली,
अब घर सम्भाल तू मेरा।

 

परमीत सिंह धुरंधर

सुग्गा


सुग्गा पकरले बानी एगो बगइचा में,
आ व अ न सखी, तोहके दिखाईं,
बोलेला मिठू कइसन हमरा कहला में.
एके नजर डालनी त अ भूल गइल,
पंख पसारल, की छोड़ के अब आपन,
घर- द्वार बइठल बा हमरा आसरा में.
आवअ न सखी, तोहके दिखाईं, बोलेला
मिठू धुरंधर कइसन हमरा कहला में.

जवानी के लिल्ला


देख अ जवानी के लिल्ला,
एगो मुस्की पे,
हिलअइले बारी जिल्ला।
चलावअ तारी हसुआ घांस पर,
लेकिन,
चिरअ तारी हमार सीना।
देखअ जवानी के लिल्ला,
हिलअइले बारी जिल्ला।
बैला मारखाव भी आके,
इन्कारा आगे,
हो जाला एकदम सीधा।
देखअ जवानी के लिल्ला,
हिलअइले बारी जिल्ला।
अंखिया में कजरा डाल के,
चुनर के अपना छान के,
लीलअ तारी बीघा – पे – बीघा।
देखअ जवानी के लिल्ला,
हिलअइले बारी,
धुरंधर सिंह के जिल्ला।

नयका धान


जब से जवान भइल बारु,
नयका तू धान भइल बारु।
चमकअ तारु, उछलअ तारु,
चवरा से लेके खलिहान तक.
लूटअ तारु, धुनअ तारु,
गेंहूँ से लेके कपाश तक.
सारा जवार ई दहकता तहरे,
जोवन के ई लहक से.
बुढऊ के मन भी बहकता,
तहरे आँचल के उफान पे.
खेलअ तारु, खेळावअ तारु,
आँचरा में सबके बाँध के.
रगरअ तारु, झगड़अ तारु,
चढ़ के सबके दूकान पे.
जब से जवान भइल बारु,
धुरंधर सिंह के धान भइल बारु।

नथुनिया


कह अ न परमीत तानी अंखिया से,
केने-केने धोती खुलल रतिया में.
मत पूछ अ रानी इह बतिया रे,
बड़ा गजन लिखल रहल देहिया के.
नशा अइसन रहल की होश गवा देहनी,
अखियाँ खुलल त अ रहनी खटिया पे.
रात भर में लूट गइली सारा जोगवाल थाती,
बस रह गइल एगो नथुनिया रे.