कलम उठा ली है,
तो भय क्या फिर तलवार का.
जब आ गए हैं सागर की लहरों में,
तो फिर सहारा क्या पटवार का.
चाँद साँसों के लिए,
नहीं झुकने देंगे ये अपना तिरंगा।
जब मौत ही निश्चित है,
तो फिर भय क्या क़यामत का.
परमीत सिंह धुरंधर
कलम उठा ली है,
तो भय क्या फिर तलवार का.
जब आ गए हैं सागर की लहरों में,
तो फिर सहारा क्या पटवार का.
चाँद साँसों के लिए,
नहीं झुकने देंगे ये अपना तिरंगा।
जब मौत ही निश्चित है,
तो फिर भय क्या क़यामत का.
परमीत सिंह धुरंधर