केजरी – ममता – और माया: a triangle


तुमने ऐसा प्यासा छोड़ा
नासूर बन गया फोड़ा
अब तो ये प्यास मिटती नहीं
चाहे जितना भी पिलाती मेडोना।

तेरी आँखों का जादू
लूट ले गया मेरा पूरा काबुल
पतली कमर तूने हिला के
ऐसे मारा दिल पे हथोड़ा।

सब कहते हैं मैं हूँ पागल
तूने ऐसे छनकाया अपना छागल
डोली चढ़ गयी किसी और के
मुझको खिला के गरम पकोड़ा।

सत्ता में हैं मोदी
यूपी को संभाले योगी
मुझको तूने ऐसे नचाया
जनता को नचाये जैसे
केजरी – ममता – और माया।

कमल को पुलकित कर देंगे


हम हर तस्वीर को बदल देंगें,
सबकी तकदीर को बदल देंगे।
हम योगी ही नहीं, वैरागी भीं है,
कण-कण में कमल को पुलकित कर देंगे।
वो जो कहतें हैं की मेरी छवि दागदार है,
उनके गिरेवान में देखिये, कितने आस्तीन के साँप हैं.
हम दिन के ही नहीं, बल्कि उनके रातों के गुनाह को भी,
सरे आम, उजागर कर देंगे।
हम योगी ही नहीं, वैरागी भीं है,
जन्नत – से -जहन्नुम तक की सब राहें समतल कर देंगे।
हम योगी ही नहीं, वैरागी भीं है,
कण-कण में कमल को पुलकित कर देंगे।

 

परमीत सिंह धुरंधर

कलम भी मौन रह गए


किसानों की ऐसी – की – तैसी करके,
गांधी की पार्टी चल रही है मुस्करा के.
झंडा उठा दिया है सत्ता के खिलाफ,
बस बीफ के मुद्दे को मुद्दा बना के.
दलितों के कपड़े फाड़ कर उनको,
नंगा कर दिया पुलिश वालो ने.
मोदी के मौन के खिलाफ,
साहित्य अकादमी आवार्ड लौटाने वाले,
कलम भी मौन रह गए,
हरिजनों के इस दमन पे.

परमीत सिंह धुरंधर

राममनोहर लोहिया: हमारा भी हक़ है


हम वीरों की धरती के,
वाशिंदे हैं.
हम कारिंदे नहीं,
जो यूँ पगार लें.
इस धरती पे,
हमारा भी हक़ है.
हम कोई पंक्षी नहीं,
जो यूँ आहार लें.
तुम्हे अगर नहीं है स्वीकार,
हमारी समानता,
तो ये तुम्हारी मज़बूरी है.
हम कोई फ़कीर नहीं,
जो अपने पेट पे प्रहार लें.

परमीत सिंह धुरंधर

राममनोहर लोहिया: मैं टकराता चलूँगा


यूँ ही जुल्म को मिटाता चलूँगा,
ए सत्ताधीशों,
सुन लो, मैं टकराता चलूँगा।
तुम सत्ता के जिस सिहासन पे बैठो हो,
मैं उसकी जड़ों को हिलाता चलूँगा।
ए सत्ताधीशों,
सुन लो, मैं टकराता चलूँगा।
तुम्हारे वादे झूठे, दिखावे और फरेब हैं,
मैं जन-जन को ये बताता चलूँगा।
ए सत्ताधीशों,
सुन लो, मैं टकराता चलूँगा।
तुम्हे अगर भूख है गरीबों के लहूँ की,
तो मैं तुम्हारी बागों को उजाड़ता चलूँगा।
ए सत्ताधीशों,
सुन लो, मैं टकराता चलूँगा।
तुम्हे गुरुर है जिन गुलाबों के प्रेम पे,
जब तक सांस हैं तन में,
मैं इन गुलाबों को सुखाता चलूँगा।
ए सत्ताधीशों,
सुन लो, मैं टकराता चलूँगा।

परमीत सिंह धुरंधर

लोहिया एक आंदोलन थे


लोहिया एक आंदोलन थे,
जीवन और संघर्ष,
का सम्मलेन थे.
मुस्कराते हुए भी,
कंटीले पथों पे चलकर,
जुल्म के खिलाफ,
खड़ी हुई भीड़ का आभूषण थे.
लोहिया एक आंदोलन थे.
जब भाग रहे थे सभी अंधे हो कर,
गांधी और नेहरू की तरफ.
तब हम जैसे सत्य के सिपाहियों,
के लिए वो एक भगवान थे.
लोहिया एक आंदोलन थे,
अपने आप में सम्पूर्ण जन-आंदोलन थे.
लोहिया एक आंदोलन थे.

परमीत सिंह धुरंधर