मुझे हर रिश्ता पसंद है तेरी आँखों से होकर,
आ जुल्म-सितम सब सह लें, हम एक धागे में बंध के.
परमीत सिंह धुरंधर
मुझे हर रिश्ता पसंद है तेरी आँखों से होकर,
आ जुल्म-सितम सब सह लें, हम एक धागे में बंध के.
परमीत सिंह धुरंधर
बदल दे जो खून को वो रिस्ता गुनाहों पे चलने को मजबूत करता है,
ये उनकी आँखें हैं दोस्तों जो मुझे हर गुनाह करने को मजबूर करता है.
परमीत सिंह धुरंधर